प्रत्यनीक
From जैनकोष
गो.क./जी.प्र./८००/९७९/८ श्रुततद्धरादिषु अविनयवृत्तिः प्रत्यनीकं प्रतिकूलतेत्यर्थः । = श्रुत व श्रुतधारकों में अविनयरूप प्रवृत्ति का प्रतिकूल होना प्रत्यनीक कहलाता है ।
गो.क./जी.प्र./८००/९७९/८ श्रुततद्धरादिषु अविनयवृत्तिः प्रत्यनीकं प्रतिकूलतेत्यर्थः । = श्रुत व श्रुतधारकों में अविनयरूप प्रवृत्ति का प्रतिकूल होना प्रत्यनीक कहलाता है ।