प्रमोद
From जैनकोष
स.सि./७/११/३४९/७ वदनप्रसादादिभिरभिव्यज्यमानान्तर्भावितरागः प्रमोदः । = मुख की प्रसन्नता आदि के द्वारा भीतर भक्ति और अनुराग का व्यक्त होना प्रमोद है । (रा.वा./७/११/२५३८/१६)।
भ.आ./वि./१३९६/१५१६/१५ मुदिता नाम यतिगुणचिन्ता । यतयो हि विनीता, विरागा, विभया, विमाना, विरोषा, विलोभा इत्यादिका । = यतियों के, गुणों का विचार करके उनके गुणों में हर्ष मानना यह प्रमोद भावना का लक्षण है । यतियों में नम्रता, वैराग्य, निर्भयता, अभिमानरहितपना, निर्दोषता और निर्लोभपना ये गुण रहते हैं । (ज्ञा./२७/११-१२) ।