महापद्म
From जैनकोष
- महाहिमवान पर्वत का एक हृद जिसमें से रोहित व रोहितास्या ये दो नदियाँ निकलती हैं। ह्री देवी इसकी अधिष्ठात्री है।– देखें - लोक / ३ / ९ ।
- अपर विदेह का एक क्षेत्र।– देखें - लोक / ५ / २ ।
- विकृतवान् वक्षार का एक कूट– देखें - लोक / ५ / ४
- कुण्डपर्वत के सुप्रभकूट का रक्षक एक नागेन्द्र देव– देखें - लोक / ५ / १२ ;
- कुरुवंश की वंशावली के अनुसार यह एक चक्रवर्ती थे जिनका अपर नाम पद्म था–देखें - पद्म।
- भावी काल के प्रथम तीर्थंकर– देखें - तीर्थंकर / ५ ।
- म.पु.।५५। श्लोक–पूर्वी पुष्करार्ध के पूर्व विदेह में पुष्कलावती देश का राजा था (२-३)। धनपद नामक पुत्र को राज्य दे दीक्षा धारण की।(१८-१९)। ग्यारह अंगधारी होकर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। समाधिमरणकर प्राणतस्वर्ग में देव हुआ।(१९-२२)। यह सुविधिनाथ भगवान् का पूर्व का भव नं २ है।–देखें - सुविधिनाथ।