पाठ:भक्तामर—पण्डित हेमराज
From जैनकोष
यह गुनमाल विशाल नाथ तुम गुनन सँवारी
विविध-वर्णमय-पुहुप गूँथ मैं भक्ति विथारी ॥
जे नर पहिरे कंठ भावना मन में भावैं
'मानतुंग' ते निजाधीन-शिव-लछमी पावैं ॥
भाषा भक्तामर कियो, 'हेमराज' हित हेत
जे नर पढ़ैं सुभावसों, ते पावैं शिव-खेत ॥४८॥