सूत्रपाहुड गाथा 25
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि यदि स्त्री भी दर्शन से शुद्ध हो तो पापरहित है, भली है -
पर यदी वह सद्दृष्टि हो संयुक्त हो जिनमार्ग में ।
सद्आचरण से युक्त तो वह भी नहीं है पापमय ।।२५।।
जइ दंसणेण सुद्धा उत्ता मग्गेण सावि संजुत्ता ।
घोरं चरिय चरित्तं इत्थीसु ण २पव्वया भणिया ।।२५।।
यदि दर्शनेन शुद्धा उक्ता मार्गेण सापि संयुक्ता ।
घोरं चरित्वा चारित्रं स्त्रीषु न पापका भणिता ।।२५।।
अर्थ - स्त्रियों में जो स्त्री दर्शन अर्थात् जिनमत की श्रद्धा से शुद्ध है, वह भी मार्ग से संयुक्त कही गई है । जो घोर चारित्र तीव्र तपश्चरणादिक आचरण से पापरहित होती है, इसलिए उसे पापयुक्त नहीं कहते हैं ।
भावार्थ - स्त्रियों में जो स्त्री सम्यक्त्व सहित हो और तपश्चरण करे तो पापरहित होकर स्वर्ग को प्राप्त हो इसलिए प्रशंसा करने योग्य है, परन्तु स्त्रीपर्याय से मोक्ष नहीं है ।।२५।।