मोक्षपाहुड गाथा 85
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि इसप्रकार मुनियों को प्रवर्तने के लिए कहा । अब श्रावकों को प्रवर्तने के लिए कहते हैं -
एवं जिणेहि कहियं सवणाणं सावयाण पुण सुणसु ।
संसारविणासयरं सिद्धियरं कारणं परमं ।।८५।।
एवं जिनै: कथितं श्रमणानां श्रावकाणां पुन: शृणुत ।
संसारविनाशकरं सिद्धिकरं कारणं परमं ।।८५।।
जिनवरकथित उपदेश यह तो कहा श्रमणों के लिए ।
अब सुनो सुखसिद्धिकर उपदेश श्रावक के लिए ।।८५।।
अर्थ - एवं अर्थात् पूर्वाक्त प्रकार उपदेश तो श्रमण मुनियों को जिनदेव ने कहा है । अब श्रावकों को संसार का विनाश करनेवाला और सिद्धि जो मोक्ष उसको करने का उत्कृष्ट कारण ऐसा उपदेश कहते हैं सो सुनो ।
भावार्थ - पहिले कहा वह तो मुनियों को कहा और अब आगे कहते हैं वह श्रावकों को कहते हैं, ऐसा कहते हैं जिससे संसार का विनाश हो और मोक्ष की प्राप्ति हो ।।८५।।