मोक्षपाहुड गाथा 92
From जैनकोष
आगे मिथ्यादृष्टि के चिह्न कहते हैं -
कुच्छियदेवं धम्मं कुच्छियलिंगं च बंदए जो दु ।
लज्जाभयगारवदो मिच्छादिट्ठी हवे सो हु ।।९२।।
कुत्सितदेवं धर्मं कुत्सितलिंगं च वन्दते य: तु ।
लज्जाभयगारवत: मिथ्यादृष्टि: भवेत् स: स्फुटम् । । ९ २ । ।
जो लाज-भय से नमें कुत्सित लिंग कुत्सित देव को ।
और सेवें धर्म कुत्सित जीव मिथ्यादृष्टि वे ।।९२।।
अर्थ - जो क्षुधादिक और रागद्वेषादिक दोषों से दूषित हो वह कुत्सित देव है, जो हिंसादि दोषों से सहित हो वह कुत्सित धर्म है, जो परिग्रहादि सहित हो वह कुत्सितलिंग है । जो इनकी वंदना करता है, पूजा करता है, वह तो प्रगट मिथ्यादृष्टि है । यहाँ अब विशेष कहते हैं कि जो इनको भले-हित करनेवाले मानकर वंदना करता है, पूजा करता है वह तो प्रगट मिथ्यादृष्टि है, परन्तु जो लज्जा भय गारव इन कारणों से भी वंदना करता है पूजा करता है वह भी प्रगट मिथ्यादृष्टि है । लज्जा तो ऐसे कि लोग इनकी वन्दना करते हैं, पूजा करते हैं, हम नहीं पूजेंगे तो लोग हमको क्या कहेंगे ? हमारी इस लोक में प्रतिष्ठा चली जायेगी इसप्रकार लज्जा से वंदना व पूजा करे । भय ऐसे कि इनको राजादिक मानते हैं, हम नहीं मानेंगे तो हमारे ऊपर कुछ उपद्रव आ जायेगा, इसप्रकार भय से वंदना व पूजा करे । गारव ऐसे कि हम बड़े हैं, महंत पुरुष हैं, सब ही का सन्मान करते हैं, इन कार्यो से हमारी बड़ाई है, इसप्रकार गारव से वंदना व पूजना होता है । इसप्रकार मिथ्यादृष्टि के चिह्न कहे ।।९२।।