योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 159
From जैनकोष
मारणादि परिणामों से कर्मबन्ध -
विदधान: परीणामं मारणादिगतं परम् ।
बध्नाति विविधं कर्म मिथ्यादृष्टिर्निरन्तरम् ।।१५९।।
अन्वय :- मिथ्यादृष्टि: निरंतरं परं मारणादिगतं परीणामं विदधान: विविधं कर्म बध्नाति ।
सरलार्थ :- वास्तविक वस्तु-व्यवस्था को न जाननेवाला मिथ्यादृष्टि/अज्ञानी अपने से संबंधित अन्य जीवों के मारणादि विषयक अशुभ परिणाम करता हुआ सतत अनेक प्रकार के दु:खदायी कर्मो को बाँधता रहता है ।