अष्टांक
From जैनकोष
क. पा. 5/$571/333/8 किं अट्ठं कं णाम। अणंतगुणवड्ढो। कथमेदिस्से अट्ठंसण्णा। अट्ठण्हमंकाणमणंतगुणवड्ढी त्तिट्ठवणादो।
= प्रश्न - अष्टांक किसे कहते हैं? उत्तर - अनन्तगुणवृद्धिको। शंका - अनन्तगुण वृद्धिकी अष्टांक संज्ञा कैसे है? उत्तर - नहीं, क्योंकि आठके अंककी अन्तगुणवृद्धिरूपसे स्थापना की गयी है। (अर्थात् आठका अंक अनन्तगुणवृद्धिकी सहनानी है।)
( धवला पुस्तक 12/4,2,214/170/7) ( लब्धिसार / जीवतत्त्व प्रदीपिका / मूल या टीका गाथा 46/79) (गो.क.भाषा/549/2) ( गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / गोम्मट्टसार जीवकाण्ड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 325/684)।
धवला पुस्तक 12/4,2,7,202/131/6 किं अठ्ठंकं णाम। हेटिठमुव्वंकं सव्वजीवरासिणा गुणिदे जं लद्धं तेत्तियमेत्तेण हेट्ठिमुब्वंकादो जमहियंट्ठाणं तमट्ठंकं णाम। हेट्ठिमुब्वं करूवाहियसव्वजीवरासिणा गुणिदे अट्ठंकमुप्पज्जदि त्ति भणिदं हो दि।
= प्रश्न - अष्टांक किसे कहते हैं? उत्तर - अघस्तन उर्वंकको सब जीवराशिसे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतने मात्रसे, जो अधस्तन उर्वकसे अधिक स्थान है उसे अष्टांक कहते हैं। अधस्तन उर्वकको एक अधिक सब जीवराशिसे गुणित करनेपर अष्टांक उत्पन्न होता है, यह उसका अभिप्राय है।