योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 365
From जैनकोष
श्रमणों के दो भेद -
प्रव्रज्या-दायक: सूरि: संयतानां निगीर्यते ।
निर्यापका: पुन: शेषाश्छेदोपस्थापका मता: ।।३६५।।
अन्वय :- संयतानां प्रव्रज्या-दायक: सूरि: निगीर्यते । पुन: शेषा: (श्र्रणा:) छेदोपस्थापका: निर्यापका: मता: ।
सरलार्थ :- जीवन में प्रथम बार दीक्षा लेनेवाले नवीन दीक्षार्थी संयमियों को जो मुनिराज दीक्षा देते हैं, उन दीक्षादाता मुनिराज को सूरि, आचार्य अथवा गुरु कहते हैं । पहले से ही दीक्षा प्राप्त मुनिराज के संयमपालन में कुछ दोष लगने पर दोष प्राप्त मुनिराज को आगमानुसार उपदेश देकर जो मुनिराज उनको पुन: संयम में स्थापित करते हैं, उन मुनिराज को निर्यापक कहते हैं ।