योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 439
From जैनकोष
बुद्ध्यादि पूर्वक कार्यो के फलभेद की दिशासूचना -
चारित्रदर्शनज्ञानतत्स्वीकारो यथाक्रमम् ।
तत्रोदाहरणं ज्ञेयं बुद्ध्यादीनां प्रसिद्धये ।।४३९।।
अन्वय :- (यत्) यथाक्रमं चारित्र-दर्शन-ज्ञान-तत्-स्वीकार: (अस्ति) । तत्र बुद्ध्यादिनां प्रसिद्धये उदाहरणं ज्ञेयम् ।
सरलार्थ :- चारित्र-दर्शन-ज्ञान का यथाक्रम स्वीकार अर्थात् दर्शन-ज्ञान-चारित्र के क्रम से जो स्वीकार है, उसमें बुद्धि आदि की प्रसिद्धि के लिए यहाँ उदाहरणरूप से भेद को जानना चाहिए ।