कालानुयोग - आहारक मार्गणा
From जैनकोष
14. आहारक मार्गणा—
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
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प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
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नं.1 |
नं.2 |
नं.1 |
नं.3 |
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आहारक |
... |
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54-55 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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211-212 |
3 समय कम क्षुद्रभव |
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असंख्याता-संख्यात असं.उत्.अवसर्पिणी |
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अनाहारक |
... |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
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214-215 |
1 समय |
विग्रह गति |
3 समय |
विग्रह गति |
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216 |
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अन्तर्मुहूर्त |
अयोग केवली |
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आहारक |
1 |
337 |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
338-339 |
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अन्तर्मु0 |
गुणस्थान या भव परिवर्तन कर विग्रह |
असं.उत्.अवसर्पिणी |
1 समय के विग्रह सहित भ्रमण |
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2-14 |
340 |
— |
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मूलोघवत् |
— |
— |
340 |
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मूलोघवत् |
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अनाहारक(कार्मा.काययोग) |
1 |
217 |
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सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
218-219 |
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1 समय |
मारणान्तिक समुद्घात पूर्वक 1 विग्रह से जन्म |
3 समय |
जघन्यवत् पर 3 विग्रह से जन्म |
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2,4 |
220-221 |
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1 समय |
एक जीववत् |
आ0/असं |
जघन्यवत् प्रवाह |
222-223 |
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1 समय |
एक विग्रह से जन्म |
2 समय |
2 विग्रह से उत्पन्न |
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13 |
224-225 |
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3 समय |
एक जीववत् |
सं0समय |
जघन्यवत् प्रवाह |
226 |
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3 समय |
कपाट से क्रमश: प्रतर, लोकपूर्ण पुन: प्रतर |
3 समय |
जघन्यवत् |
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14 |
342 |
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मूलोघवत् |
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— |
342 |
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मूलोघवत् |
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