योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 305
From जैनकोष
मलिन आत्मा में केवलज्ञान नहीं -
न दोषमलिने तत्र प्रादुर्भवति केवलम् ।
आदर्शे न मलग्रस्ते किंचिद् रूपं प्रकाशते ।।३०५।।
अन्वय :- (यथा) मलग्रस्ते आदर्शें तत्र किंचित् (अपि) रूपं न प्रकाशते तथैव दोषमलिने (आत्मनि) केवलं (ज्ञानं) न प्रादुर्भवति ।
सरलार्थ :- जैसे धूल से धूसरित दर्पण में किसी भी पदार्थ का रूप दिखाई नहीं देता; वैसे ही ज्ञानावरणादि कर्मरूप दोषों से दूषित/मलिन हुए आत्मा में केवलज्ञान प्रगट नहीं होता ।