योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 334
From जैनकोष
घाति कर्मों का नाश -
ऊचिरे ध्यान-मार्गज्ञा ध्यानोद्धूतर ज श् च या : ।
भावि-योगि-हितायेदं ध्वान्त-दीपसमं वच:।।३३४।।
अन्वय :- ध्यानोद्धूत रजश्चया: ध्यान-मार्गज्ञा: भावि-योगि-हिताय इदं ध्वान्त-दीपसमं वच: रुचिरे ।
सरलार्थ :- ध्यान द्वारा घातिकर्मरूपी रज-समूह को आत्मा से दूर करनेवाले ध्यान-मर्मज्ञ सर्वज्ञ भगवन्तों ने भावी साधक मुनिराजों के लिये अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करनेवाला दीपस्तम्भ समान अगला/ध्यान का उपदेश दिया है ।