गार्हवत्याग्नि
From जैनकोष
अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न त्रिविध अग्नियों में प्रथम अग्नि । इसकी स्थापना पृथक् कुण्ड में की जाती है । इसी से नैवेद्य बनाया जाता है । यह स्वयं पवित्र नहीं है न देवता रूप ही है, अर्हन्तों की पूजा के सम्बन्ध से यह पवित्र मानी गयी है । निर्वाण क्षेत्र के समान इसकी भी पूजा की जाती है । महापुराण 40. 82-89