योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 487
From जैनकोष
ज्ञान की महिमा -
अनुष्ठानास्पदं ज्ञानं ज्ञानं मोहतमोsपहम् ।
पुरुषार्थकरं ज्ञानं ज्ञानं निर्वृति-साधनम् ।।४८७।।
अन्वय :- ज्ञानं अनुष्ठानास्पदं , ज्ञानं मोहतमोsपहं, ज्ञानं पुरुषार्थकरं, (च) ज्ञानं निर्वृतिसाधनम ् (अस्ति ) ।
सरलार्थ :- सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र का आधार है, मोहरूपी महा अंधकार को नाश करनेवाला एक मात्र सम्यग्ज्ञान है, पुरुष अर्थात् आत्मा के प्रयोजन को पूरा करनेवाला मोक्ष का साक्षात् साधन सम्यग्ज्ञान है ।