दुंदुभि
From जैनकोष
(1) एक संवत्सर । इसमें प्रजा सब प्रकार से आनन्दित रहती है । हरिवंशपुराण 19.22
(2) आहार-दान से उत्पन्न पंचाश्चर्यों में एक आश्चर्य । महापुराण 8.173-175
(3) युद्ध और मांगलिक अवसरों पर बनाया जाने वाला वाद्य । इसे देववाद्य भी कहते हैं । इनकी ध्वनि मेघगर्जना के समान होती है । केवलज्ञान की उत्पत्ति होने पर ये वाद्य बजाये जाते हैं । महावीर तीर्थंकर को केवलज्ञान होने के समय देवों ने साढ़े बारह करोड़ दुन्दुभि वाद्य बजाये थे । महापुराण 6.85-86, 89, 13, 177, 17, 106, 23.61, पद्मपुराण 2.153, 4.26, 13.7, वीरवर्द्धमान चरित्र 15.10-11
(4) एक नगर । पद्मपुराण 19.2