कालानुयोग - कषाय मार्गणा
From जैनकोष
6. <a name="3.6" id="3.6"></a>कषाय मार्गणा—
मार्गणा |
गुणस्थान |
नाना जीवापेक्षया |
एक जीवापेक्षया |
||||||||||
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
प्रमाण |
जघन्य |
विशेष |
उत्कृष्ट |
विशेष |
||||
नं.1 |
नं.2 |
|
नं.1 |
नं.3 |
|||||||||
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
सू. |
सू. |
|
|
|
|
|
|||||||||||||
चारों कषाय |
... |
|
29-30 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
129-130 |
1 समय |
क्रोध में केवल मृत्यु वाला भंग और शेष तीन में मृत्यु व व्याघात वाले दोनों भंग |
अंतर्मुहूर्त |
कषाय परिवर्तन |
अकषाय उप. |
... |
|
29-30 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
131 |
1 समय |
अपगत वेदीवत् |
अंतर्मुहूर्त |
अपगत वेदीवत् |
अकषाय क्षपक |
... |
|
29-30 |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
|
131 |
अंतर्मु. |
अपगत वेदीवत् |
कुछ कम पूर्ण को. |
अपगत वेदीवत् |
चारों कषाय |
1 |
250 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
250 |
|
1 समय |
कषाय, गुणस्थान परिवर्तन व मरण के सर्व भंग-काल/5क्रोध के साथ व्याघात नहीं होता शेष तीन के साथ होता है। मरण की प्ररूपणा में क्रोध कषायी को नरक में उत्पन्न कराना, मान कषायी को नरक में, माया कषायी को तिर्यंच में और लोभ कषायी को देवों में। इस प्रकार यथा योग्य रूप से सर्व ही गुणस्थानों मे लगाना। |
अंतर्मुहूर्त |
स्व गुणस्थान में रहते हुए ही कषाय परिवर्तन |
|
2 |
250 |
|
1 समय |
मूलोघवत् |
पल्य/अ. |
मूलोघवत् |
250 |
|
1 समय |
" |
6 आवली |
स्व गुणस्थान में रहते हुए ही कषाय परिवर्तन |
|
3 |
250 |
|
1 समय |
21 भंगों से परि.–देखें काल - 5 |
पल्य/अ. |
अविच्छिन्न प्रवाह |
250 |
|
1 समय |
" |
अंतर्मुहूर्त |
स्व गुणस्थान में रहते हुए ही कषाय परिवर्तन |
|
4-7 |
250 |
|
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
सर्वदा |
विच्छेदाभाव |
250 |
|
1 समय |
उपरोक्तवत् परंतु 7वें में व्याघात नहीं |
अंतर्मुहूर्त |
स्व गुणस्थान में रहते हुए ही कषाय परिवर्तन |
क्रोध मान माया |
8-9 (उप.) |
251-252 |
|
1 समय |
1 जीववत् |
अंतर्मु. |
जघन्यवत् प्रवाह |
253-254 |
|
1 समय |
8,9,10 में अवरोहक और 9,10 में आरोहक व अवरोहक के प्रथम समय में मरण |
अंतर्मुहूर्त |
सर्वोत्कृष्ट स्थिति |
लोभ कषाय |
8-10 (क्षपक) |
|
|
1 समय |
1 जीववत् |
अंतर्मु. |
जघन्यवत् प्रवाह |
253-254 |
|
1 समय |
8,9,10 में अवरोहक और 9,10 में आरोहक व अवरोहक के प्रथम समय में मरण |
अंतर्मुहूर्त |
सर्वोत्कृष्ट स्थिति |
क्रोध मान माया |
8-9 (क्षप.) |
255-256 |
|
अंतर्मु. |
1 जीववत् |
जघन्य से सं.गुणा |
जघन्यवत् प्रवाह |
257-258 |
|
अंतर्मु. |
मरण रहित शेष भंग उपरोक्तवत् (देखें काल - 5) |
|
सर्वोत्कृष्ट स्थिति |
लोभ |
8-10 (उप.) |
255-256 |
|
अंतर्मु. |
1 जीववत् |
जघन्य से सं.गुणा |
जघन्यवत् प्रवाह |
257-258 |
|
अंतर्मु. |
मरण रहित शेष भंग उपरोक्तवत् (देखें काल - 5) |
|
सर्वोत्कृष्ट स्थिति |
अकषायी |
11-14 |
259 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
259 |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |