श्लेष संबंध
From जैनकोष
षट्खंडागम/12/5,6/ सू.43/41 - जो सो संसिलेसबंधो णाम तस्स इमो णिद्देसो - जहा कट्ठ-जदूणं अण्णोण्णसंसिलेसिदाणं बंधो संभवदि सो सव्वो संसिलेसबंधो णाम।43। = जो संश्लेष बंध है उसका यह निर्देश है - जैसे परस्पर संश्लेष को प्राप्त हुए काष्ठ और लाख का बंध होता है वह सब संश्लेषबंध है।43।
राजवार्तिक/5/24/9/488/3 जतुकाष्ठादिसंश्लेषणात् संश्लेषबंध:। = लाख काठ आदि का संश्लेष बंध है।
धवला 12/5,6,39/37/9 रज्जु-वस्त्र-कट्ठादीहिं विणा अल्लीवणविसेसेहि विणा जो चिक्कण-अचिक्कणदव्वाणं चिक्कणदव्वाणं वा परोप्परेण बंधो सो संसिलेसबंधो णाम। = रस्सी, वस्त्र और काष्ठ आदि के बिना तथा अल्लीवणविशेष के बिना जो चिक्कण और अचिक्कण द्रव्यों का अथवा चिक्कण द्रव्यों का परस्पर बंध होता है वह संश्लेषबंध कहलाता है।
समयसार / तात्पर्यवृत्ति/57/96/15 क्षीरनीरसंश्लेषस्तथा। = दूध और जल का परस्पर संबंध संश्लेष है।