ग्रन्थ:दर्शनपाहुड़ गाथा 30
From जैनकोष
णाणेण दंसणेण य तवेण चरियेण संजमगुणेण ।
चउहिं पि समाजोगे मोक्खो जिणसासणे दिट्ठो ॥३०॥
ज्ञानेन दर्शनेन च तपसा चारित्रेण संयमगुणेन ।
चतुर्णामपि समायोगे मोक्ष: जिनशासने दृष्ट: ॥३०॥
आगे मोक्ष किससे होता है सो कहते हैं -
अर्थ - ज्ञान, दर्शन, तप और चारित्र से इन चारों का समायोग होने पर जो संयमगुण हो उससे जिन शासन में मोक्ष होना कहा है ॥३०॥