वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-12
From जैनकोष
वादर सांपराये सर्वे ।। 9-12 ।।
प्रमत्त विरत से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक सर्व परीषहों की संभवता―वादर सांपराय अर्थात् स्थूल कषाय वाले जीवों में सभी परीषह होते हैं । यहाँ स्थूल कषाय का अर्थ अज्ञानी जीवों का न लेना क्योंकि प्रकरण है परीषह विजय का और परीषह विजय मुनियों को होता है इसलिए छठे गुणस्थान से बाद के गुणस्थान का यहाँ ग्रहण नहीं है । तब सूत्र का अर्थ हुआ छठे गुणस्थान से लेकर 9वें गुणस्थान तक के साधुओं के सभी परीषह होते हैं―क्योंकि परीषहों का कारण है ज्ञानावरणादिक कर्म । निमित्त यहाँ विद्यमान है अत: वादर सांपरायों के सभी परीषह कहे गए हैं । जहाँ सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि संयम है उस चारित्र में सभी परीषहों की संभावना है । कौन परीषह किस प्रकृति के उदय में बनता है उस प्रसंग में यह सब बताया जा रहा है ।