वर्णीजी-प्रवचन:समयसार - गाथा 325
From जैनकोष
जह कोवि णरो जंपदि अम्हं गामविसयणयरट्ठं।ण य हुंति जस्स ताणि य भणदि य मोहेण सो अप्पा।।325।।
पर में आत्मीयता का भाषण―जैसे कोई मनुष्य बोलता है कि यह गांव देश, नगर, राष्ट्र मेरा है, यह केवल मोह से बोलते है, वास्तव में ये मेरे कुछ नहीं होते हैं, जिस गांव में रहते हैं उस गांव को कहते है कि यह मेरा गांव है। आपका गांव कौनसा है? हमारा गांव भिंड है और चाहे भिंड में किराये में भी अच्छी न मिली हो और बना डालते हैं कि यह भिंड मेरा गांव है। जरा और दूर गये, दूसरे प्रांत में पहुंच गये, आपका कौन सा प्रांत है? हमारा मध्य प्रदेश है। और दूर पहुंच गये, मानो विलायत में पहुंच गए। आपका कौन सा देश हैं? हमारा हिंदुस्तान देश है। तो प्रयोजनवश व्यवहार में बोला जाता है, पर वस्तुत: कोई परमाणुमात्र भी द्रव्य मेरा नहीं है।
मोह में उदारता व अनुदारता―भैया ! पहिले समय में था इतना गौरव कि गांव की ही लड़की कहीं ब्याही हो और उस बिरादरी का न हो तो भी उस गांव में पानी न पीवें किसी के घर का। कि अरे इसमें फलाने की लड़की ब्याही है। कितनी आत्मीयता थी, तो आत्मीयता तो बुरी चीज है ? तो आज अच्छा हो गया जमाना कि भाई की भी लड़की हो तो भी गौरव नहीं है। भाई की लड़की है हमारी नहीं है तो तब था मनुष्य का उदार दृष्टिकोण, आज है उसका एक संकुचित दृष्टिकोण। बोला जाता है सब व्यवहार में। यह सब मोह का प्रताप है और उस मोह के प्रताप में सब ग्रस्त हैं। सो कोई किसी को बुरा नहीं कहता। सब सबको भला देखते हैं।
चतुराई का भ्रम―भैया ! जो जितनी चतुराई खेले, जितना धनी बन जाय, राज्य की सरकार में अपनी पैठ जमा ले, जो चतुराई की बातें करे उसे लोक में चतुर बोलते हैं। और कोई सीधा सादा सत्यता पर डटा हो, अपने आत्महित की दृष्टि में रहता है, वह लोक की दृष्टि में कम अक्ल वाला है। यों बताया जाता है। पर किसी की परवाह क्या करना ? अपना आनंद जिसमें होता हो वही काम करना है। खूब देख लो, स्वाधीन ध्रुव आनंद जिस पद में मिले उस पद का यत्न करना चाहिए। तो दृष्टांत में बताया गया है कि कोई पुरूष ग्राम को, देश को, नगर को और राष्ट्र को कहता है कि मेरा है, पर वास्तव में वे तो सब राज्य के हैं, हमारे नहीं हैं। यह तो केवल मोह से ही कह रहा है कि यह मेरा हैं।
ग्राम नगरादिक का विश्लेषण―ग्राम किसे कहते हैं? जो झाडियों से घिरा हो। जैसे छोटा गांव देखा होगा कि पास में ही झाडिया लगी हैं, कांटे लगे हैं, पास ही चारों ओर से खलिहान लगा है, वास्तव में छोटी सी बाउंडरी से घिरा हो, झाडि़यों से ढका हो उसे गांव बोलते हैं। और देश वह कहलाता है जिसमें अनेक गांव होते हैं अथवा जिसमें अनेक गांव समा जाते हैं वह देश कहलाता है। नगर वह जिसमें सभ्य नागरिक रहते हैं और राष्ट्र सब देशों का जो समूह है वह राष्ट्र कहलाता है। इन सबको यह मोही जीव मोह में कहता है कि मेरा है, किंतु है नहीं, ऐसा बताकर अब दृष्टांत कहते है।