GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 25 - अर्थ
From जैनकोष
चिरं वा क्षिप्रं 'चिर' अथवा 'क्षिप्र' ऐसा ज्ञान (अधिक काल अथवा अल्पकाल ऐसा ज्ञान) मात्रारहितं तु परिमाण बिना (काल के माप बिना) न अस्ति नहीं होता;
सा मात्रा अपि और वह परिमाण खलु वास्तव में पुद्गलद्रव्येण विना पुद्गलद्रव्य के बिना नहीं होता; तस्मात् इसलिये कालः प्रतीत्यभवः काल आश्रितरूप से उपजनेवाला है (अर्थात् व्यवहारकाल पर का आश्रय करके उत्पन्न होता है) ।