कंदर्प
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/7/32/369/14 रागोद्रेकात्प्रहासमिश्रोऽशिष्टवाक्प्रयोग: कंदर्प:। = रागभाव की तीव्रतावश हास्य मिश्रित असभ्य वचन बोलना कंदर्प है। ( राजवार्तिक/7/32/1/556 ), ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/180/398/1 )।
पुराणकोष से
(1) निरंतर काम से आकुलित इस नाम के देव । हरिवंशपुराण 3.136
(2) अनर्थदंडव्रत का एक अतिचार, (राग की उत्कृष्टता से हास्यमिश्रित भंड वचन बोलना) । हरिवंशपुराण 58.179