Category:करणानुयोग
From जैनकोष
करणानुयोग का लक्षण
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 44 लोकालोकविभक्तेर्युगपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनां च। आदर्शमिव तथामतिरवैति करणानुयोगं च ॥44॥
= लोक अलोक के विभाग को, युगों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों को दर्पण के समान प्रगट करनेवाले करणानुयोग को सम्यग्ज्ञान जानता है।
( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/10/260)।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/10 त्रिलोकसारे जिनांतरलोकविभागादिग्रंथव्याख्यानं करणानुयोगो विज्ञेयः।
= त्रिलोकसार में तीर्थंकरों का अंतराल और लोकविभाग आदि व्याख्यान है। ऐसे ग्रंथरूप करणानुयोग जानना चाहिए।
(पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 173/154/17)।
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