आत्माश्रय दोष
From जैनकोष
श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.459/पृ.555/5 स्वस्मिन् स्वापेक्षत्वमात्माश्रयत्वं।
= स्वयं अपने लिए अपनी अपेक्षा बने रहता आत्माश्रय दोष है।
श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.459/पृ.555/5 स्वस्मिन् स्वापेक्षत्वमात्माश्रयत्वं।
= स्वयं अपने लिए अपनी अपेक्षा बने रहता आत्माश्रय दोष है।