वार्तिक
From जैनकोष
श्लोकवार्तिक/1/ प.9 पं.2/20/10 वार्तिकं हि सूत्राणामनुपत्ति चोदना तत्परिहारो विशेषाभिधानं प्रसिद्धम्। = सूत्र के नहीं अवतार होने देने की तथा सूत्रों के अर्थ को न सिद्ध होने देने की ऊहापोह या तर्कणा करना और उसका परिहार करना, तथा ग्रंथ के विशेष अर्थ को प्रतिपादित करना, ऐसे वाक्य को वार्तिक कहते हैं।