अंजनगिरि: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
(12 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
| |||
< | == सिद्धांतकोष से == | ||
[[Category:अ]] | |||
1. नंदीश्वर द्वीप की पूर्वादि दिशाओं में ढोल के आकार के (Cylindrical) चार पर्वत हैं। इनपर चार चैत्यालय हैं। काले रंग के होने के कारण इनका नाम अंजनगिरि है - देखें [[ लोक#4.5 | लोक - 4.5]]। | |||
2. रुचक पर्वतस्थ वर्द्धमान कूट का रक्षक एक दिग्गजेंद्रदेव - देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]। | |||
<noinclude> | |||
[[ अंजनकूट | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ अंजनपर्वत | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: अ]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) मेरु पर्वत के दक्षिण की ओर सीतोदा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.206 </span> | |||
<p id="2"> | |||
(2) नंदीश्वर द्वीप के मध्य चौरासी हजार योजन गहरे, ढोल के समान आकार तथा वज्रमय मूल वाले, चारों दिशाओं में स्थित काले चार शिखरों और चार जिनालयों से युक्त, चार पर्वत । <span class="GRef"> महापुराण 8.324 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.586-591, 646-654, 676-678 </span>देखें [[ नंदीश्वर ]] | |||
<p id="3"> | |||
(3) रुचकवर द्वीप के रुचकवर पर्वत की उत्तरदिशा में स्थित वर्द्धमान कूट का निवासी, एक पल्य की आयु वाला दिग्गजेंद्रदेव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.699-702 </span>देखें [[ रुचकवर ]] | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ अंजनकूट | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ अंजनपर्वत | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: अ]] |
Revision as of 16:12, 31 July 2022
सिद्धांतकोष से
1. नंदीश्वर द्वीप की पूर्वादि दिशाओं में ढोल के आकार के (Cylindrical) चार पर्वत हैं। इनपर चार चैत्यालय हैं। काले रंग के होने के कारण इनका नाम अंजनगिरि है - देखें लोक - 4.5।
2. रुचक पर्वतस्थ वर्द्धमान कूट का रक्षक एक दिग्गजेंद्रदेव - देखें लोक - 5.13।
पुराणकोष से
(1) मेरु पर्वत के दक्षिण की ओर सीतोदा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित कूट । हरिवंशपुराण 5.206
(2) नंदीश्वर द्वीप के मध्य चौरासी हजार योजन गहरे, ढोल के समान आकार तथा वज्रमय मूल वाले, चारों दिशाओं में स्थित काले चार शिखरों और चार जिनालयों से युक्त, चार पर्वत । महापुराण 8.324 हरिवंशपुराण 5.586-591, 646-654, 676-678 देखें नंदीश्वर
(3) रुचकवर द्वीप के रुचकवर पर्वत की उत्तरदिशा में स्थित वर्द्धमान कूट का निवासी, एक पल्य की आयु वाला दिग्गजेंद्रदेव । हरिवंशपुराण 5.699-702 देखें रुचकवर