अघाती प्रकृतियाँ: Difference between revisions
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Revision as of 17:26, 8 December 2022
- घाती व अघाती प्रकृति के लक्षण
धवला पुस्तक 7/2,1,15/62/6 केवलणाण-दंसण-सम्मत्त-चारित्तवीरियाणमणेयभेयभिण्णाण जीवगुणाण विरोहित्तणेण तेसिं घादिववदेसादो। = केवलज्ञान, केवलदर्शन, सम्यक्त्व, चारित्र और वीर्य रूप जो अनेक भेद-भिन्न जीवगुण हैं, उनके उक्त कर्म विरोधी अर्थात् घातक होते हैं और इसलिए वे घातियाकर्म कहलाते हैं।( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा संख्या./10/8 ), (पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 998 )।
धवला पुस्तक 7/2,1,15/62/7 सेसकम्माणं घादिववदेसो किण्ण होदि। ण, तेसि जीवगुणविणासणसत्तीए अभावा। = शेष कर्मों को घातिया नहीं कहते क्योंकि, उनमें जीव के गुणों का विनाश करने की शक्ति नहीं पायी जाती।
( पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 999 </span)।
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घाती अघाती की अपेक्षा प्रकृतियों का विभाग
राजवार्तिक अध्याय 8/23,7/584/28 ताः पुनः कर्मप्रकृतयो द्विविधाः-घाति का अघातिकाश्चेति। तत्र ज्ञानदर्शनावरणमोहांतरायाख्या घातिका। इतरा अघातिकाः। = वह कर्म प्रकृतियाँ दो प्रकार की हैं - घातिया व अघातिया। तहाँ ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह व अंतराय ये तो घातिया हैं और शेष चार (वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र) अघातिया।( धवला पुस्तक 7/2,1,15/62 ), ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा संख्या/7,9/7 )।
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जीवविपाकी प्रकृतियों को घातिया न कहने का कारण
धवला पुस्तक 7/2,1,15/63/1 जीवविवाइणामकम्मवेयणियाणं घादिकम्मववएसो किण्ण होदि। ण जीवस्स अणप्पभूदसुभगदुभगादिपज्जयसमुप्पायणे वावदाणं जीव-गुणविणासयत्तविरहादो। जीवस्स सुहविणासिय दुक्खप्पाययं असादावेदणीयं घादिववएसं किण्ण लहदे। ण तस्स घादिकम्मसहायस्स घादिकम्मेहि विणा सकलकरणे असमत्थस्स सदो तत्थ पउत्ती णत्थि त्ति जाणावणट्ठं तव्ववएसाकरणादो। = प्रश्न - जीवविपाकी नामकर्म एवं वेदनीय कर्मों को घातिया कर्म क्यों नहीं माना?
उत्तर - नहीं माना, क्योंकि, उनका काम अनात्मभूत सुभग दुर्भग आदि जीव की पर्यायें उत्पन्न करना है, जिससे उन्हें जीवगुण विनाशक मानने में विरोध उत्पन्न होता है।
प्रश्न - जीव के सुख को नष्ट करके दुःख उत्पन्न करने वाले असातावेदनीय को घातिया कर्मनाम क्यों नहीं दिया?
उत्तर - नहीं दिया, क्योंकि, वह घातियाकर्मों का सहायक मात्र है और घातिया कर्मों के बिना अपना कार्य करने में असमर्थ तथा उसमें प्रवृत्ति रहित है। इसी बात को बतलाने के लिए असाता वेदनीय को घातिया कर्म नहीं कहा। -
वेदनीय भी कथंचित् घातिया है
गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा संख्या/19/12 घादिंव वेयणीयं मोहस्स बलेण घाददे जीवं। इदि घादीणं मज्झे मोहस्सादिम्हि पढिदं तु ॥19॥ = वेदनीयकर्म घातिया कर्मवत् मोहनीयकर्म का भेद जो रति अरति तिनि के उदयकाल करि ही जीव को घातै है। इसी कारण इसको घाती कर्मों के बीच में मोहनीय से पहिले गिना गया है। -
अंतराय भी कथंचित् अघातिया है
गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा संख्या/17/11 घादीवि अघादिं वा णिस्सेसं घादणे असक्कादो। णामतियणिमित्तादो विग्घं पडिदं अघादि चरिमम्हि ॥17॥ = अंतरायकर्म घातिया है तथापि अघातिया कर्मवत् है। समस्त जीव के गुण घातने को समर्थ नाहीं है। नाम, गोत्र, वेदनीय इन तीन कर्मनि के निमित्ततैं ही इसका व्यापार है। इसी कारण अघातियानि के पीछे अंत विषैं अंतराय कर्म कह्या है।
धवला पुस्तक 1/1,1,1/44/4 रहस्यमंतरायः, तस्य शेषघातित्रितयविनाशाविनाभाविनो भ्रष्टवीजवन्निःशक्तीकृताघातिकर्मणो हननादरिहंता। = रहस्य अंतरायकर्म को कहते हैं। अंतराय कर्म का नाश शेष तीन घातिया कर्मों के नाश का अविनाभावी है और अंतराय कर्म के नाश होने पर अघातिया कर्म भ्रष्ट बीज के समान निःशक्त हो जाते हैं।