अजितंजय: Difference between revisions
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[[हरिवंश पुराण]] सर्ग ६०/४९२ [[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या ८५५-८५६ आगम में इस राजा को धर्म का संस्थापक माना गया है। जबकि कल्कि के अत्याचारों से धर्म व साधुसंघ प्रायः नष्ट हो चुका था तब कल्कि का पुत्र अजितंजय मगध देश का राजा हुआ था जिसने अत्याचारों से सन्तप्त प्रजा को सान्त्वना देकर पुनः संघ व धर्म की वृद्धि की थी। समय वी. नि. १०४०; ई. ५१४।<br> | [[हरिवंश पुराण]] सर्ग ६०/४९२ [[त्रिलोकसार]] गाथा संख्या ८५५-८५६ आगम में इस राजा को धर्म का संस्थापक माना गया है। जबकि कल्कि के अत्याचारों से धर्म व साधुसंघ प्रायः नष्ट हो चुका था तब कल्कि का पुत्र अजितंजय मगध देश का राजा हुआ था जिसने अत्याचारों से सन्तप्त प्रजा को सान्त्वना देकर पुनः संघ व धर्म की वृद्धि की थी। समय वी. नि. १०४०; ई. ५१४।<br> | ||
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर महावीर का प्रमुख प्रश्नकर्त्ता । महापुराण 76. 532-533</p> | |||
<p id="2">(2) महावीर-निर्वाण के सात सौ सत्ताईस वर्ष पश्चात् हुआ इन्द्रपुर नगर का एक राजा । हरिवंशपुराण 60.487-492</p> | |||
<p id="3">(3) कंस का एक धनुष । इस धनुष को चढ़ाने वाले को कंस के ज्योतिषी ने उसका बैरी बताया था । हरिवंशपुराण 35.71-77</p> | |||
<p id="4">(4) भरत चक्रवर्ती का दिव्यास्त्रों से युक्त, स्थल और जल पर समान रूप से गतिशील, दिव्याश्ववाही, चक्रचिह्नांकित ध्वजाधारी, दिव्य सारथी द्वारा चालित, हरितवर्ण का एक रथ । अपरनाम अजितंजित । महापुराण 28.56-59, 37.160, हरिवंशपुराण 11.4</p> | |||
<p id="5">(5) अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा और उसकी रानी सुप्रभा का चक्रवर्ती पुत्र, अपरनाम पिहितास्रव । इसने बीस हजार राजाओं के साथ मन्दिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षा ली थी तथा अवधिज्ञान और चारणऋद्धि प्राप्त को थी । महापुराण 7.41 -52</p> | |||
<p id="6">(6) सुसीमा नगर का स्वामी । महापुराण 7.61-62</p> | |||
<p id="7">(7) पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयपुर नगर का राजा । वसुमती इसकी रानी और युगन्धर इसका पुत्र था । महापुराण7.89-91</p> | |||
<p id="8">(8) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था । महापुराण 47.281-283</p> | |||
<p id="9">(9) घातकीखण्ड द्वीप के भरत क्षेत्र के अलका देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी अजितसेना नाम की रानी और अजितसेन नाम का पुत्र था । विरक्त होकर इसने अपने पुत्र को राज्य दे दिया । फिर स्वयंप्रभा तीर्थेश से अशोक न में दीक्षित होकर यह केवली हुआ । महापुराण 54.87,92-95 </p> | |||
<p id="10">(10) गांधार देश के सांधार नगर का राजा । इसकी अजिता नाम की रानी और ऐरा नाम की पुत्री थी । महापुराण 63.384-385 </p> | |||
<p id="11">(11) सिंह पर्याय में महावीर के धर्मोपदेशों चारण-ऋद्धिधारी मुनि । ये अमितगुण नामक मुनि के सहगामी थे । महावीर के जीव ने सिंह पर्याय में इनके सदुपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के व्रत धारण किये थे तथा अनशन पूर्वक व्रतों का निर्वाह करते हुए मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नामक देव हुआ था । महापुराण 74.171-113, वीरवरांग चरित्र 4.2-59</p> | |||
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Revision as of 13:41, 5 May 2020
== सिद्धांतकोष से ==
हरिवंश पुराण सर्ग ६०/४९२ त्रिलोकसार गाथा संख्या ८५५-८५६ आगम में इस राजा को धर्म का संस्थापक माना गया है। जबकि कल्कि के अत्याचारों से धर्म व साधुसंघ प्रायः नष्ट हो चुका था तब कल्कि का पुत्र अजितंजय मगध देश का राजा हुआ था जिसने अत्याचारों से सन्तप्त प्रजा को सान्त्वना देकर पुनः संघ व धर्म की वृद्धि की थी। समय वी. नि. १०४०; ई. ५१४।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर महावीर का प्रमुख प्रश्नकर्त्ता । महापुराण 76. 532-533
(2) महावीर-निर्वाण के सात सौ सत्ताईस वर्ष पश्चात् हुआ इन्द्रपुर नगर का एक राजा । हरिवंशपुराण 60.487-492
(3) कंस का एक धनुष । इस धनुष को चढ़ाने वाले को कंस के ज्योतिषी ने उसका बैरी बताया था । हरिवंशपुराण 35.71-77
(4) भरत चक्रवर्ती का दिव्यास्त्रों से युक्त, स्थल और जल पर समान रूप से गतिशील, दिव्याश्ववाही, चक्रचिह्नांकित ध्वजाधारी, दिव्य सारथी द्वारा चालित, हरितवर्ण का एक रथ । अपरनाम अजितंजित । महापुराण 28.56-59, 37.160, हरिवंशपुराण 11.4
(5) अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा और उसकी रानी सुप्रभा का चक्रवर्ती पुत्र, अपरनाम पिहितास्रव । इसने बीस हजार राजाओं के साथ मन्दिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षा ली थी तथा अवधिज्ञान और चारणऋद्धि प्राप्त को थी । महापुराण 7.41 -52
(6) सुसीमा नगर का स्वामी । महापुराण 7.61-62
(7) पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयपुर नगर का राजा । वसुमती इसकी रानी और युगन्धर इसका पुत्र था । महापुराण7.89-91
(8) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था । महापुराण 47.281-283
(9) घातकीखण्ड द्वीप के भरत क्षेत्र के अलका देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी अजितसेना नाम की रानी और अजितसेन नाम का पुत्र था । विरक्त होकर इसने अपने पुत्र को राज्य दे दिया । फिर स्वयंप्रभा तीर्थेश से अशोक न में दीक्षित होकर यह केवली हुआ । महापुराण 54.87,92-95
(10) गांधार देश के सांधार नगर का राजा । इसकी अजिता नाम की रानी और ऐरा नाम की पुत्री थी । महापुराण 63.384-385
(11) सिंह पर्याय में महावीर के धर्मोपदेशों चारण-ऋद्धिधारी मुनि । ये अमितगुण नामक मुनि के सहगामी थे । महावीर के जीव ने सिंह पर्याय में इनके सदुपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के व्रत धारण किये थे तथा अनशन पूर्वक व्रतों का निर्वाह करते हुए मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नामक देव हुआ था । महापुराण 74.171-113, वीरवरांग चरित्र 4.2-59