अष्टाह्निक व्रत
From जैनकोष
(व्रतविधान संग्रह/पृ. ३६ व क्रियाकोश)।
गणना - इस व्रतकी पाँच मर्यादाएँ हैं - ५१, २४, १५, ९, ३ अष्टाह्निकाएँ अर्थात् १७ वर्ष, ८ वर्ष, ५ वर्ष ३ वर्ष व १ वर्ष पर्यन्त किया जाता है। प्रतिवर्ष आषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन मासके शुक्ल पक्षमें ८-१५ तक ८ दिन अष्टाह्निका पर्व के हैं। विधि - भी तीन प्रकार है - उकृष्ट, मध्यम व जघन्य। उत्कृष्ट - सप्तमीके पूर्वार्ध भागमें एकाशन; ८-१५ तक ८ दिन उपवास; पडवाकी दोपहर पश्चात् पारणा। मध्यम - सप्तमीको एकाशन; ८ को उपवास; ९ को पारणा; १० को भात व जल; ११ को एक बार अल्प आहार; १२ को पूरा भोजन; १३ को जलसहित नीरस एक अन्नका भोजन; १४ को भात व मिर्च व जल; १५ को उपवास और पडिमाको पारणा। जघन्य - सप्तमीको दौपहर पश्चातसे पडिमाको दोपहर तक पूर्ण शीलका पालन, धर्मध्यान सहित मन्दिरमें निवास और मौन संहित प्रतिदिन अन्तराय टालकर भोजन। जाप्यमन्त्र - प्रत्येक दिन अपने-अपने दिन वाले मन्त्र की त्रिकाल जाप्य करनी। । ८मी को - ”ओं ह्रीं नन्दीश्वरसंज्ञाय नमः।” ९मी को - ”ओं ह्रीं अष्टमहाविभूतिसंज्ञाय नमः।” १०मी को - ”ओं ह्रीं त्रिलोकसारसंज्ञाय नमः।” ११ दशी को ”ओं ह्रीं चतुर्मूखसंज्ञाय नमः।” १२ दशीको - ”ओं ह्रीं महालक्षणसंज्ञाय नमः।” १३ दशीको - ”ओं ह्रीं स्वर्गसोपानसंज्ञाय नमः।” १४ दशीको - ”ओं ह्रीं सर्वसम्पत्तिसंज्ञाय नमः।” पूर्णिमाको - ”ओं ह्री इन्द्रध्वजसंज्ञाय नमः।”