असंयम: Difference between revisions
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Revision as of 16:18, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
पं.सं/प्रा.1/137 जीवा चउदसभेया इंदियविसया य अट्ठवीसं तु। जे तेसु णेय विरया असंजया ते मुणेयव्वा ॥137॥
= जीव चौदह भेद रूप हैं और इंद्रियोंके विषय अट्ठाईस हैं। जीवघातसे और इंद्रिय विषयोंसे विरत नहीं होनेको असंयम कहते हैं। जो इनसे विरत नहीं हैं उन्हें असंय जानना चाहिए।
( धवला पुस्तक 1/1,1,123/194/373) ( गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 478) (पं.सं/सं.247-248)।
राजवार्तिक अध्याय 2/6/6/106 चारित्रमोहस्य सर्वधातिस्पर्धकस्योदयात् प्राण्युपद्यातेंद्रियविषये द्वेषाभिलाषनिवृत्तिपरिणामरहितोऽसंयत् औदयिकः।
= चारित्रमोहके उदयसे होनेवाली हिंसादि और इंद्रिय विषयोंमें प्रवृत्ति असंयम है।
( सर्वार्थसिद्धि अध्याय 2/6/159/8)।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 21 शुद्धत्मरूपहिंसनपरिणामलक्षणस्यासंयमस्य।
= शुद्धात्मस्वरूपकी हिंसारूप परिणाम जिसका लक्षण है, ऐसा असंयम..।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 1135 व्रताभावात्मको भावो जीवस्यासंयमो यतः।
= व्रत के अभावरूप जो भाव है वह असंयम माना गया है।
2. इंद्रिय व प्राण असंयम
धवला पुस्तक 8/3,6/21/2 असंजमपच्चओ दुविहो इंदियासंजमपाणासंजमभेएण। तस्य इंदियासंजमो छव्विहो परिस-रस-रूव-गंध-सद्द णोइंदियासंजमभेएण। पाणासंजमो वि छव्विहो पुढ़वि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फदितसासंजमभेएण।
= असंयम प्रत्यय इंद्रियासंयम और प्राणासंयमके भेदसे दो प्रकारका है। इंद्रियासंयम स्पर्श रस रूप गंध शब्द और नोइंद्रिय जनित असंयम के भेदसे छह प्रकारका है। प्राण असंयम भी पृथिवी, अप् तेज, वायु, वनस्पति और त्रस जीवोंकी विराधना से उत्पन्न असंयमके भेदसे छह प्रकारका है।
पुराणकोष से
प्रमाद, कषाय और योग पूर्ण अविरत अवस्था । ऐसे पुरुष की मन वचन और काय की क्रिया प्राणी-असंयम और इंद्रिय-असंयम के भेद से दो प्रकार की होती है । असंयम अप्रत्याख्यानावरण चारित्रमोह का उदय रहने तक (चतुर्थ गुणस्थान) रहता है । यह बंध का कारण है । महापुराण 54.152, 62.303-304