आदेश: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(10 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p>1. उद्दिष्ट आहारका एक भेद । - देखें [[ उद्दिष्ट ]]।</p> | |||
[[ | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 1/1,8/160/3 अपरः आदेशेन भेदेन विशेषेण प्ररूपणमिति।</p> | ||
= आदेश, भेद या विशेष | <p class="HindiText">= आदेश, भेद या विशेष रूप से निरूपण करना दूसरी आदेश प्ररूपणा है।</p> | ||
<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 3/1,2,2/10/1 आदेशः पृथग्भावः पृथक्करणं विभजनं विभक्तीकरणमित्यादयः पर्यायशब्दाः। गत्यादिविभिन्नचतुर्दशजीवसमासप्ररूपणमादेशः।</p> | |||
= आदेश, पृथग्भाव, पृथक्करण, विभजन, विभक्तिकरण इत्यादि पर्यायवाची शब्द हैं। आदेश | <p class="HindiText">= आदेश, पृथग्भाव, पृथक्करण, विभजन, विभक्तिकरण इत्यादि पर्यायवाची शब्द हैं। आदेश निर्देश का प्रकृत में स्पष्टीकरण इस प्रकार है कि गति आदि मार्गणाओं के भेदों से भेद को प्राप्त हुआ चौदह गुणस्थानों का प्ररूपण करना आदेश निर्देश है।</p> | ||
<p class="SanskritText">गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 3/22 संखेओ ओघोत्ति य गुणसण्णा सा च मोहजोगभवा। वित्थारादेसो त्ति य मग्गणसण्णा सकम्मभवा ॥3॥ </p> | |||
= संक्षेप या ओघ ऐसी | <p class="HindiText">= संक्षेप या ओघ ऐसी गुणस्थान की संज्ञा रूढ़ है। यह संज्ञा दर्शन चारित्र मोह तथा मन वचन काय के योगों करि उपजै है। `च' अर्थात् इसको सामान्य भी कहते हैं। बहुरि तैसे ही विस्तार या आदेश ऐसी मार्गणा स्थान की संज्ञा है। वह संज्ञा अपनी-अपनी मार्गणा के नामकर्म की प्रतीति के व्यवहार को कारण जो कर्म ताकै उदय से हो है। अर्थात् ओघ प्ररूपणा का आधार मोहनीय कर्म है आदेश प्ररूपणा का आधार स्व स्व कर्म है।</p> | ||
<p>2. उपदेशकें अर्थ में</p> | |||
<p class="SanskritText">पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 647 आदेशस्योपदेशेभ्यः स्याद्विशेषः स भेदभाक्। आददे गुरुणा दत्तं नापदेशेष्वयं विधिः ॥647॥</p> | |||
= | <p class="HindiText">= आदेश में उपदेशों से वह भेद रखने वाला विशेष होता है कि मैं गुरु के दिए हुए व्रत को ग्रहण करता हूँ, परंतु वह विधि उपदेशों में नहीं होती है। (अर्थात् आदेश अधिकार पूर्वक आज्ञा के रूप में होता है और उपदेश साधारण संभाषण का नाम है।</p> | ||
<noinclude> | |||
[[ आदेय | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ आद्धा | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: आ]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Revision as of 13:59, 24 August 2022
1. उद्दिष्ट आहारका एक भेद । - देखें उद्दिष्ट ।
धवला पुस्तक 1/1,8/160/3 अपरः आदेशेन भेदेन विशेषेण प्ररूपणमिति।
= आदेश, भेद या विशेष रूप से निरूपण करना दूसरी आदेश प्ररूपणा है।
धवला पुस्तक 3/1,2,2/10/1 आदेशः पृथग्भावः पृथक्करणं विभजनं विभक्तीकरणमित्यादयः पर्यायशब्दाः। गत्यादिविभिन्नचतुर्दशजीवसमासप्ररूपणमादेशः।
= आदेश, पृथग्भाव, पृथक्करण, विभजन, विभक्तिकरण इत्यादि पर्यायवाची शब्द हैं। आदेश निर्देश का प्रकृत में स्पष्टीकरण इस प्रकार है कि गति आदि मार्गणाओं के भेदों से भेद को प्राप्त हुआ चौदह गुणस्थानों का प्ररूपण करना आदेश निर्देश है।
गोम्मट्टसार जीवकांड / मूल गाथा 3/22 संखेओ ओघोत्ति य गुणसण्णा सा च मोहजोगभवा। वित्थारादेसो त्ति य मग्गणसण्णा सकम्मभवा ॥3॥
= संक्षेप या ओघ ऐसी गुणस्थान की संज्ञा रूढ़ है। यह संज्ञा दर्शन चारित्र मोह तथा मन वचन काय के योगों करि उपजै है। `च' अर्थात् इसको सामान्य भी कहते हैं। बहुरि तैसे ही विस्तार या आदेश ऐसी मार्गणा स्थान की संज्ञा है। वह संज्ञा अपनी-अपनी मार्गणा के नामकर्म की प्रतीति के व्यवहार को कारण जो कर्म ताकै उदय से हो है। अर्थात् ओघ प्ररूपणा का आधार मोहनीय कर्म है आदेश प्ररूपणा का आधार स्व स्व कर्म है।
2. उपदेशकें अर्थ में
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 647 आदेशस्योपदेशेभ्यः स्याद्विशेषः स भेदभाक्। आददे गुरुणा दत्तं नापदेशेष्वयं विधिः ॥647॥
= आदेश में उपदेशों से वह भेद रखने वाला विशेष होता है कि मैं गुरु के दिए हुए व्रत को ग्रहण करता हूँ, परंतु वह विधि उपदेशों में नहीं होती है। (अर्थात् आदेश अधिकार पूर्वक आज्ञा के रूप में होता है और उपदेश साधारण संभाषण का नाम है।