आसन्न भव्य: Difference between revisions
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<span class="GRef">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/62</span> <span class="SanskritText">ये पुनरिदंमिदानीमेव वचः प्रतीच्छंति ते शिवश्रियो भाजनं समासन्नभव्याः भवंति। ये तु पुरा प्रतीच्छंति ते दूरभव्या इति।</span> = <span class="HindiText">जो उस (केवली भगवान् का सुख सर्व सुखो में उत्कृष्ट है) वचन को इसी समय स्वीकार (श्रद्धा) करते हैं वे शिवश्री के भाजन '''आसन्न भव्य''' हैं। और जो आगे जाकर स्वीकार करेंगे वे दूर भव्य हैं। <br /> | <span class="GRef">(प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/62)</span> <span class="SanskritText">ये पुनरिदंमिदानीमेव वचः प्रतीच्छंति ते शिवश्रियो भाजनं समासन्नभव्याः भवंति। ये तु पुरा प्रतीच्छंति ते दूरभव्या इति।</span> = <span class="HindiText">जो उस (केवली भगवान् का सुख सर्व सुखो में उत्कृष्ट है) वचन को इसी समय स्वीकार (श्रद्धा) करते हैं वे शिवश्री के भाजन '''आसन्न भव्य''' हैं। और जो आगे जाकर स्वीकार करेंगे वे दूर भव्य हैं। <br /> | ||
<span class="GRef">गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/704/1144/2</span> <span class="HindiText">जे थोरे काल में मुक्त होते होइ ते '''आसन्न भव्य''' हैं। जे बहुत काल में मुक्त होते होइ ते दूर भव्य हैं। </span> | <span class="GRef">(गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/704/1144/2)</span> <span class="HindiText">जे थोरे काल में मुक्त होते होइ ते '''आसन्न भव्य''' हैं। जे बहुत काल में मुक्त होते होइ ते दूर भव्य हैं। </span> | ||
<span class="HindiText">देखें [[ भव्य ]] | <span class="HindiText">-अधिक जानकारी के लिए देखें [[ भव्य#1.4 | भव्य 1.4 ]]।</span> | ||
Latest revision as of 12:30, 14 July 2023
(प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका/62) ये पुनरिदंमिदानीमेव वचः प्रतीच्छंति ते शिवश्रियो भाजनं समासन्नभव्याः भवंति। ये तु पुरा प्रतीच्छंति ते दूरभव्या इति। = जो उस (केवली भगवान् का सुख सर्व सुखो में उत्कृष्ट है) वचन को इसी समय स्वीकार (श्रद्धा) करते हैं वे शिवश्री के भाजन आसन्न भव्य हैं। और जो आगे जाकर स्वीकार करेंगे वे दूर भव्य हैं।
(गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा/704/1144/2) जे थोरे काल में मुक्त होते होइ ते आसन्न भव्य हैं। जे बहुत काल में मुक्त होते होइ ते दूर भव्य हैं।
-अधिक जानकारी के लिए देखें भव्य 1.4 ।