कुलचर्या: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(5 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
< | <span class="HindiText"> त्रेपन क्रियाओं मे उन्नीसवीं क्रिया । वर्ण सस्कार हो जाने के पश्चात् पूजा करने, दान आदि देने तथा अपने कुछ के अनुसार असि, मति आदि छ: कर्मों में से किसी एक के द्वारा आजीविका करने को कुलचर्या कहते हैं । इसे कुल भी कहा गया है । </span><span class="GRef"> महापुराण 38.55-63, 142-143, 39.72 </span> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ | [[ कुलचंद्र | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ कुलचर्या क्रिया | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 17:07, 23 March 2023
त्रेपन क्रियाओं मे उन्नीसवीं क्रिया । वर्ण सस्कार हो जाने के पश्चात् पूजा करने, दान आदि देने तथा अपने कुछ के अनुसार असि, मति आदि छ: कर्मों में से किसी एक के द्वारा आजीविका करने को कुलचर्या कहते हैं । इसे कुल भी कहा गया है । महापुराण 38.55-63, 142-143, 39.72