ग्रन्थ:मोक्षपाहुड़ गाथा 63
From जैनकोष
आहारासणणिद्दाजयं च काऊण जिनवरमएण ।
झायव्वो णिय अप्पा णाऊणं गुरुपसाएण ॥६३॥
आहारासननिद्राजयं च कृत्वा जिनवरमतेन ।
ध्यातव्य: निजात्मा ज्ञात्वा गुरुप्रसादेन ॥६३॥
आगे कहते हैं कि आहार, आसन, निद्रा इनको जीत कर आत्मा का ध्यान करना -
अर्थ - आहार, आसन, निद्रा इनको जीतकर और जिनवर के मत से तथा गुरु के प्रसाद से जानकर निज आत्मा का ध्यान करना ।
भावार्थ - आहार, आसन, निद्रा को जीतकर आत्मा का ध्यान करना तो अन्य मतवाले भी कहते हैं, परन्तु उनके यथार्थ विधान नहीं है इसलिए आचार्य कहते हैं कि जैसे जिनमत में कहा है, उस विधान को गुरु के प्रसाद से जानकर ध्यान करना सफल है, जैसे जैनसिद्धान्त में आत्मा का स्वरूप तथा ध्यान का स्वरूप और आहार, आसन, निद्रा इनके जीतने का विधान कहा है वैसे जानकर इनमें प्रवर्तना ॥६३॥