सूत्रपाहुड़ गाथा 24: Difference between revisions
From जैनकोष
('<div class="PrakritGatha"><div>लिंगम्मि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकक्खदेस...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(No difference)
|
Revision as of 17:18, 3 November 2013
लिंगम्मि य इत्थीणं थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु ।
भणिओ सुहुमो काओ तासिं कह होइ पव्वज्ज ॥२४॥
लिङ्गे च स्त्रीणां स्तनान्तरे नाभिकक्षदेशेषु ।
भणित: सूक्ष्म: काय: तासां कथं भवति प्रव्रज्या ॥२४॥
आगे स्त्रियों को दीक्षा नहीं है इसका कारण कहते हैं -
अर्थ - स्त्रियों के लिंग अर्थात् योनि में, स्तनांतर अर्थात् दोनों कुचों के मध्य प्रदेश में तथा कक्ष अर्थात् दोनों काँखों में, नाभि में सूक्ष्मकाय अर्थात् दृष्टि के अगोचर जीव कहे हैं, अत: इसप्रकार स्त्रियों के १प्रवज्या अर्थात् दीक्षा कैसे हो ?
भावार्थ - - स्त्रियों के योनि, स्तन, कांख, नाभि में पंचेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति निरन्तर कही है, इनके महाव्रतरूप दीक्षा कैसे हो ? महाव्रत कहे हैं वह उपचार से कहे हैं, परमार्थ से नहीं है, स्त्री अपने सामर्थ्य की हद्द को पहुँचकर व्रत धारण करती है, इस अपेक्षा से उपचार से महाव्रत कहे हैं ॥२४॥