चैत्य वृक्ष: Difference between revisions
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<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/80 </span><span class="PrakritGatha">मणिमयजिणपडिमाओ अट्ठमहापडिहेर संजुत्ता। एक्केक्कसिं चेत्तद्दुमम्मि चत्तारि चत्तारि।807।</span> =<span class="HindiText"> एक-एक चैत्य वृक्ष के आश्रित आठ महाप्रातिहार्यों से संयुक्त चार-चार मणिमय जिन प्रतिमाएँ होती हैं।807। <br /> | |||
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Revision as of 14:07, 1 July 2023
तिलोयपण्णत्ति/3/38 चेत्ततरूणं मूलं पत्तेक्कं चउदिसासु पंचेव। चेट्ठंति जिणप्पडिमा पलियंकठिया सुरेहि महणिज्जा।38। = चैत्यवृक्षों के मूल में चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में पद्मासन से स्थित और देवों से पूजनीय पाँच-पाँच जिन प्रतिमाएँ विराजमान होती हैं।38।
तिलोयपण्णत्ति/4/80 मणिमयजिणपडिमाओ अट्ठमहापडिहेर संजुत्ता। एक्केक्कसिं चेत्तद्दुमम्मि चत्तारि चत्तारि।807। = एक-एक चैत्य वृक्ष के आश्रित आठ महाप्रातिहार्यों से संयुक्त चार-चार मणिमय जिन प्रतिमाएँ होती हैं।807।
अधिक जानकारी के लिये देखें वृक्ष ।