जीव समास: Difference between revisions
From जैनकोष
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> लक्षण</strong></span><br /> | |||
पं.सा./प्रा./१/३२<span class="PrakritGatha"> जेहिं अणेया जीवा णज्जंते बहुविहा वितज्जादी। ते पुण संगहिवत्था जीवसमासे त्ति विण्णेया।३२।</span> =<span class="HindiText">जिन धर्मविशेषों के द्वारा नाना जीव और उनकी नाना प्रकार की जातिया, जानी जाती हैं, पदार्थों का संग्रह करने वाले उन धर्म विशेषों को जीवसमास जानना चाहिए। (गो.जी./मू./७०/१८४)।</span><br /> | |||
ध.१/१,१,२/१३१/२ <span class="SanskritText">जीवा: समस्यन्ते एष्विति जीवसमासा:।</span><br /> | |||
ध.१/१,१,८/१६०/६ <span class="SanskritText">जीवा: सम्यगासतेऽस्मिन्निति जीवसमासा:। क्वासते। गुणेषु। के गुणा:। औदयिकौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिका इति गुणा:। </span>= | |||
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<li class="HindiText"> अनन्तानन्त जीव और उनके भेद प्रभेदों का जिनमें संग्रह किया जाये उन्हें जीवसमास कहते हैं। </li> | |||
<li><span class="HindiText"> अथवा जिसमें जीव भले प्रकार रहते हैं अर्थात् पाये जाते हैं उसे जीवसमास कहते हैं। <strong>प्रश्न</strong>–जीव कहा रहते हैं? <strong>उत्तर</strong>–गुणों में जीव रहते हैं। <strong>प्रश्न</strong>–वे गुण कौनसे हैं ? <strong>उत्तर</strong>–औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक ये पाच प्रकार के गुण अर्थात् भाव हैं, जिनमें जीव रहते हैं।</span><br /> | |||
/ | गो.जी./मू./७१/१८६<span class="PrakritGatha"> तसचदुजुगाणमज्झे अविरुद्धेहिंजुदजादिकम्मुदये। जीवसमासा होंति हु तब्भवसारिच्छसामण्णा।७१।</span> =<span class="HindiText">त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण ऐसी नामकर्म की प्रकृतियों के चार युगलों में यथासम्भव परस्पर विरोधरहित जो प्रकृतिया, उनके साथ मिला हुआ जो एकेन्द्रिय आदि जातिरूप नामकर्म का उदय, उसके होने पर जो तद्भावसादृश्य सामान्यरूप जीव के धर्म, वे जीवसमास हैं।<br /> | ||
</span></li> | |||
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</li> | |||
<li class="HindiText"><strong> <a name="2" id="2">जीव समासों के अनेक प्रकार भेद-प्रभेद १,२ आदि भेद</strong></li> | |||
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<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top" class="HindiText"><br /> | |||
जीवसामान्य की अपेक्षा </td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">एक प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">संसारी जीव त्रस-स्थावर भेदों की अपेक्षा </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">२ प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय, व सकलेन्द्रिय की अपेक्षा </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">३ प्रकार है।</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">एके०विक०, संज्ञी पंचे०, असंज्ञी पंचे० की अपेक्षा </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">४ प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">एके०द्वी०, त्री०, चतु० पंचेन्द्रिय की अपेक्षा </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">५ प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">पृथिवी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति व त्रस की अपेक्षा </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">६ प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">पृथिवी आदि पाच स्थावर तथा विकलेन्द्रिय सकलेन्द्रिय </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">७ प्रकार है।</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त ७ में सकलेन्द्रिय के संज्ञी असंज्ञी होने से</p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">८ प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">स्थावर पाच तथा त्रस के द्वी०, त्री०, चतु० व पंचे०-ऐसे </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">९ प्रकार है। </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त ९ में पंचेन्द्रिय के संज्ञी-असंज्ञी होने से </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१० प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">पाचों स्थावरों के बादर सूक्ष्म से १० तथा त्रस- </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">११ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त स्थावर के १०+विकले०व सकलेन्द्रिय—</p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१२ प्रकार है</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त १२ सकलेन्द्रिय के संज्ञी व असंज्ञी होने से </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१३ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">स्थावरों के बादर सूक्ष्म से १० तथा त्रस के द्वी०, त्री०, चतु०, पं०ये चार मिलने से </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१४ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त १४ में पंचेन्द्रिय के संज्ञी-असंज्ञी होने से </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१५ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">पृ०अप्, तेज, वायु, साधारण वनस्पति के नित्य व इतर निगोद ये छह स्थावर इनके बादर सूक्ष्म=१२+प्रत्येक वन०, विकलेन्द्रिय, संज्ञी व असंज्ञी–</p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१६ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">स्थावर के उपरोक्त १३+द्वी०त्री०चतु०पंचे०–</p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१७ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">उपरोक्त १७ में पंचे०के संज्ञी और असंज्ञी होने से </p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१८ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="487" valign="top"><p class="HindiText">पृ०अप्०तेज०वायु, साधारण वन०के नित्य व इतर निगोद इन छह के बादर सूक्ष्म १२+प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक ये स्थावर के १४ समास+त्रस के द्वी०,त्री०,चतु०संज्ञी पंचे०असंज्ञी पंचे०–</p></td> | |||
<td width="151" valign="top"><p class="HindiText">१९ प्रकार है </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="638" colspan="2" valign="top"><p class="HindiText">गो.जी./मू.व जी.प्र./७५-७७/१९२)। <br /> | |||
ध.२/१,१/५९१ में थोड़े भेद से उपरोक्त सर्व विकल्प कहे हैं।</p></td> | |||
</tr> | |||
</table> | |||
<p class="HindiText"><strong>संकेत</strong>―बा=बादर; सू=सूक्ष्म; प=पर्याप्त; अ=अपर्याप्त; पृ=पृथिवी, अप्=अप्; ते=तेज; वन=वनस्पति; प्रत्येक=प्रत्येक; सा=साधारण; प्र=प्रतिष्ठित; अप्र=अप्रतिष्ठित; एके=एकेन्द्रिय; द्वी=द्वीन्द्रिय; त्री=त्रीन्द्रिय; चतु=चतुरिन्द्रिय; पं=पंचेन्द्रिय।<br /> | |||
१४. जीव समास<br /> | |||
चार्ट <br /> | |||
(ष.खं.१/१,१/सूत्र ३३-३५/२३१); (पं.सं./प्रा./१/३४); (रा.वा./९/५/४/५९४/७); (ध.२/१,१/४१६/१), (स.सा./आ./५५); (गो.जी./मू./७२/१८९)।<br /> | |||
२१ भेद उपरोक्त सातों विकल्पों में प्रत्येक पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=२१। (पं.सं./प्रा./१/३५)<br /> | |||
२४. भेद<br /> | |||
चार्ट <br /> | |||
उपरोक्त १२ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=२४। (ष.खं.१/१,१/सू.३९-४२/२६४-२७२)<br /> | |||
३०. भेद<br /> | |||
चार्ट <br /> | |||
उपरोक्त १५ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=३० (पं.सं./प्रा./१/३६)।<br /> | |||
३२. भेद<br /> | |||
उपरोक्त ३० भेदों में वनस्पति के २ की बजाय ३ विकल्प कर देने से कुल १६। उनके पर्याप्त व अपर्याप्त=३२। (पं.सं./प्रा./१/३७)<br /> | |||
चार्ट<br /> | |||
३४. भेद<br /> | |||
चार्ट<br /> | |||
उपरोक्त १७ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=३४ (ति.प./५/२७८-२८०)।<br /> | |||
३६. भेद―उपरोक्त ३० भेदों में वनस्पति के दो विकल्पों की बजाय ये पाच विकल्प लगाने से कुल विकल्प=१८ इनके पर्याप्त व अपर्याप्त=३६ (पं.सं./प्रा./१/३८)।<br /> | |||
चार्ट<br /> | |||
३८. भेद―उपरोक्त ३० भेदों में वनस्पति के दो विकल्पों की बजाय ये छह विकल्प लगाने से कुल विकल्प=१९ इनके पर्याप्त व अपर्याप्त=३८ (पं.सं./प्रा./१/३९); (गो.जी./मू./७७-७८/१९५-१९६)।<br /> | |||
चार्ट<br /> | |||
. | ४८. भेद―३२ भेदों वाले १६ विकल्पों के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=४८। (पं.सं./प्रा./१/४०)<br /> | ||
५४. भेद―३६ भेदों वाले १८ विकल्पों के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=५४। (पं.सं./प्रा./१/४१)<br /> | |||
५७. भेद―३८ भेदों वाले १९ विकल्पों के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=५७। (पं.सं./प्रा./१/४२); (गो.जी./मू./७३/१९० तथा ७८/१९६)।<br /> | |||
चार्ट<br /> | |||
उपरोक्त सर्व विकल्पों में स्थावर व विकलेन्द्रिय सम्बन्धी १७ विकल्प केवल संमूर्च्छिम जन्म वाले हैं। वे १७ तथा सकलेन्द्रिय के संमूर्च्छिम वाले ६ मिलकर २३ विकल्प संमूर्च्छिम के हैं। इनके पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त=६९–गर्भज के उपरोक्त ८ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=१६।<br /> | |||
६९+१६=८५ (गो.जी./मू./७९/१९८); (का.आ./मू./१२३-१३१)<br /> | |||
९८. भेद</p> | |||
<table border="0" cellspacing="0" cellpadding="0"> | |||
<tr> | |||
<td width="433" valign="top"><p class="HindiText">तिर्यंचों में उपरोक्त </p></td> | |||
<td width="90" valign="top"><p class="HindiText">=८५ </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="433" valign="top"><p class="HindiText">मनुष्यों में आर्यखण्ड के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त ये ३+म्लेच्छखण्ड, भोगभूमि व कुभोगभूमि के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त ये ३×२=६। कुल</p></td> | |||
<td width="90" valign="top"><p> </p> | |||
<p class="HindiText">=९</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="433" valign="top"><p class="HindiText">देव व नारकियों में पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त </p></td> | |||
<td width="90" valign="top"><p class="HindiText">=४</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="433" valign="top"><p class="HindiText">(गो.जी./मू. व जी.प्र./७९-८०/१९८) (का.अ./मू./१२३-१३३) </p></td> | |||
<td width="90" valign="top"><p class="HindiText"> ९८</p></td> | |||
</tr> | |||
</table> | |||
<p class="HindiText">४०६. भेद<br /> | |||
शुद्ध पृथिवी, खर पृथिवी, अप्, तेज, वायु, साधारण वनस्पति के नित्य व इतरनिगोद, इन सातों के बादर व सूक्ष्म=१४; प्रत्येक वनस्पति में तृण, बेल, छोटे वृक्ष, बड़े वृक्ष और कन्दमूल ये ५। इनके प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित भेद से १०। ऐसे एकेन्द्रिय के विकल्प=२४ विकलेन्द्रिय के द्वी, त्री व चतु इन्द्रिय, ऐसे विकल्प=३ इन २७ विकल्पों के पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त रूप तीन-तीन भेद करने से कुल=८१।<br /> | |||
पंचेन्द्रिय तिर्यंच के कर्मभूमिज संज्ञी-असंज्ञी, जलचर, थलचर, नभचर के भेद से छह। तिन छह के गर्भज पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त १२ तथा तिन्हीं छह के संमूर्च्छिम पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त १८। उत्कृष्ट मध्यम जघन्य भोगभूमि में संज्ञी गर्भज थलचर व नभचर ये छह, इनके पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त ऐसे १२। इस प्रकार कुल विकल्प=४२।<br /> | |||
मनुष्यों में संमूर्च्छिम मनुष्य का आर्यखण्ड का केवल एक विकल्प तथा गर्भज के आर्यखण्ड, म्लेच्छखण्ड; उत्कृष्ट, मध्य व जघन्य भोगभूमि; तथा कुभोगभूमि इन छह स्थानों के गर्भज के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त ये १२। कुल विकल्प=१३। </p> | |||
= | <table border="0" cellspacing="0" cellpadding="0"> | ||
<tr> | |||
<td width="505" valign="top" class="HindiText"><br /> | |||
देवों में १० प्रकार भवनवासी, ८ प्रकार व्यन्तर, ५ प्रकार ज्योतिषी और ६३ पटलों के ६३ प्रकार वैमानिक। ऐसे ८६ प्रकार देवों के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त </td> | |||
<td width="78" valign="top"><p> </p> | |||
<p class="HindiText">=१७२ </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="505" valign="top"><p class="HindiText">नारकियों में ४९ पटलों के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त </p></td> | |||
<td width="78" valign="top"><p class="HindiText">=९८</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="505" valign="top"><p class="HindiText">सब=८१+४२+१३+१७२+९८</p></td> | |||
<td width="78" valign="top"><p class="HindiText">=४०६</p></td> | |||
</tr> | |||
</table> | |||
<p class="HindiText"> (गो.जी./मू.व जी.प्र./८० के पश्चात् की तीन प्रक्षेपक गाथाए/२००)</p> | |||
<ol start="3"> | |||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> जीवसमास बताने का प्रयोजन</strong> </span><br> | |||
द्र.सं./टी./१२/३१/५ <span class="SanskritText">अत्रैतेभ्यो भिन्नं निजशुद्धात्मतत्त्वमुपादेयमिति भावार्थ:। </span>=<span class="HindiText">इन जीवसमासों, प्राणों व पर्याप्तियों से भिन्न जो अपना शुद्ध आत्मा है उसको ग्रहण करना चाहिए। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> अन्य सम्बन्धित विषय</strong> | |||
</span> | |||
<ol> | |||
<li class="HindiText"> जीवसमासों का काय मार्गणा में अन्तर्भाव–देखें - [[ मार्गणा | मार्गणा। ]]</li> | |||
<li class="HindiText"> जीव समासों के स्वामित्व विषयक प्ररूपणाए–देखें - [[ सत् | सत् । ]]</li> | |||
</ol> | |||
</li> | |||
</ol> | |||
<p> </p> | |||
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Revision as of 15:16, 25 December 2013
- लक्षण
पं.सा./प्रा./१/३२ जेहिं अणेया जीवा णज्जंते बहुविहा वितज्जादी। ते पुण संगहिवत्था जीवसमासे त्ति विण्णेया।३२। =जिन धर्मविशेषों के द्वारा नाना जीव और उनकी नाना प्रकार की जातिया, जानी जाती हैं, पदार्थों का संग्रह करने वाले उन धर्म विशेषों को जीवसमास जानना चाहिए। (गो.जी./मू./७०/१८४)।
ध.१/१,१,२/१३१/२ जीवा: समस्यन्ते एष्विति जीवसमासा:।
ध.१/१,१,८/१६०/६ जीवा: सम्यगासतेऽस्मिन्निति जीवसमासा:। क्वासते। गुणेषु। के गुणा:। औदयिकौपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिका इति गुणा:। =- अनन्तानन्त जीव और उनके भेद प्रभेदों का जिनमें संग्रह किया जाये उन्हें जीवसमास कहते हैं।
- अथवा जिसमें जीव भले प्रकार रहते हैं अर्थात् पाये जाते हैं उसे जीवसमास कहते हैं। प्रश्न–जीव कहा रहते हैं? उत्तर–गुणों में जीव रहते हैं। प्रश्न–वे गुण कौनसे हैं ? उत्तर–औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक ये पाच प्रकार के गुण अर्थात् भाव हैं, जिनमें जीव रहते हैं।
गो.जी./मू./७१/१८६ तसचदुजुगाणमज्झे अविरुद्धेहिंजुदजादिकम्मुदये। जीवसमासा होंति हु तब्भवसारिच्छसामण्णा।७१। =त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण ऐसी नामकर्म की प्रकृतियों के चार युगलों में यथासम्भव परस्पर विरोधरहित जो प्रकृतिया, उनके साथ मिला हुआ जो एकेन्द्रिय आदि जातिरूप नामकर्म का उदय, उसके होने पर जो तद्भावसादृश्य सामान्यरूप जीव के धर्म, वे जीवसमास हैं।
- <a name="2" id="2">जीव समासों के अनेक प्रकार भेद-प्रभेद १,२ आदि भेद
जीवसामान्य की अपेक्षा |
एक प्रकार है। |
संसारी जीव त्रस-स्थावर भेदों की अपेक्षा |
२ प्रकार है। |
एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय, व सकलेन्द्रिय की अपेक्षा |
३ प्रकार है। |
एके०विक०, संज्ञी पंचे०, असंज्ञी पंचे० की अपेक्षा |
४ प्रकार है। |
एके०द्वी०, त्री०, चतु० पंचेन्द्रिय की अपेक्षा |
५ प्रकार है। |
पृथिवी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति व त्रस की अपेक्षा |
६ प्रकार है। |
पृथिवी आदि पाच स्थावर तथा विकलेन्द्रिय सकलेन्द्रिय |
७ प्रकार है। |
उपरोक्त ७ में सकलेन्द्रिय के संज्ञी असंज्ञी होने से |
८ प्रकार है। |
स्थावर पाच तथा त्रस के द्वी०, त्री०, चतु० व पंचे०-ऐसे |
९ प्रकार है। |
उपरोक्त ९ में पंचेन्द्रिय के संज्ञी-असंज्ञी होने से |
१० प्रकार है |
पाचों स्थावरों के बादर सूक्ष्म से १० तथा त्रस- |
११ प्रकार है |
उपरोक्त स्थावर के १०+विकले०व सकलेन्द्रिय— |
१२ प्रकार है |
उपरोक्त १२ सकलेन्द्रिय के संज्ञी व असंज्ञी होने से |
१३ प्रकार है |
स्थावरों के बादर सूक्ष्म से १० तथा त्रस के द्वी०, त्री०, चतु०, पं०ये चार मिलने से |
१४ प्रकार है |
उपरोक्त १४ में पंचेन्द्रिय के संज्ञी-असंज्ञी होने से |
१५ प्रकार है |
पृ०अप्, तेज, वायु, साधारण वनस्पति के नित्य व इतर निगोद ये छह स्थावर इनके बादर सूक्ष्म=१२+प्रत्येक वन०, विकलेन्द्रिय, संज्ञी व असंज्ञी– |
१६ प्रकार है |
स्थावर के उपरोक्त १३+द्वी०त्री०चतु०पंचे०– |
१७ प्रकार है |
उपरोक्त १७ में पंचे०के संज्ञी और असंज्ञी होने से |
१८ प्रकार है |
पृ०अप्०तेज०वायु, साधारण वन०के नित्य व इतर निगोद इन छह के बादर सूक्ष्म १२+प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक ये स्थावर के १४ समास+त्रस के द्वी०,त्री०,चतु०संज्ञी पंचे०असंज्ञी पंचे०– |
१९ प्रकार है |
गो.जी./मू.व जी.प्र./७५-७७/१९२)। |
संकेत―बा=बादर; सू=सूक्ष्म; प=पर्याप्त; अ=अपर्याप्त; पृ=पृथिवी, अप्=अप्; ते=तेज; वन=वनस्पति; प्रत्येक=प्रत्येक; सा=साधारण; प्र=प्रतिष्ठित; अप्र=अप्रतिष्ठित; एके=एकेन्द्रिय; द्वी=द्वीन्द्रिय; त्री=त्रीन्द्रिय; चतु=चतुरिन्द्रिय; पं=पंचेन्द्रिय।
१४. जीव समास
चार्ट
(ष.खं.१/१,१/सूत्र ३३-३५/२३१); (पं.सं./प्रा./१/३४); (रा.वा./९/५/४/५९४/७); (ध.२/१,१/४१६/१), (स.सा./आ./५५); (गो.जी./मू./७२/१८९)।
२१ भेद उपरोक्त सातों विकल्पों में प्रत्येक पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=२१। (पं.सं./प्रा./१/३५)
२४. भेद
चार्ट
उपरोक्त १२ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=२४। (ष.खं.१/१,१/सू.३९-४२/२६४-२७२)
३०. भेद
चार्ट
उपरोक्त १५ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=३० (पं.सं./प्रा./१/३६)।
३२. भेद
उपरोक्त ३० भेदों में वनस्पति के २ की बजाय ३ विकल्प कर देने से कुल १६। उनके पर्याप्त व अपर्याप्त=३२। (पं.सं./प्रा./१/३७)
चार्ट
३४. भेद
चार्ट
उपरोक्त १७ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=३४ (ति.प./५/२७८-२८०)।
३६. भेद―उपरोक्त ३० भेदों में वनस्पति के दो विकल्पों की बजाय ये पाच विकल्प लगाने से कुल विकल्प=१८ इनके पर्याप्त व अपर्याप्त=३६ (पं.सं./प्रा./१/३८)।
चार्ट
३८. भेद―उपरोक्त ३० भेदों में वनस्पति के दो विकल्पों की बजाय ये छह विकल्प लगाने से कुल विकल्प=१९ इनके पर्याप्त व अपर्याप्त=३८ (पं.सं./प्रा./१/३९); (गो.जी./मू./७७-७८/१९५-१९६)।
चार्ट
४८. भेद―३२ भेदों वाले १६ विकल्पों के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=४८। (पं.सं./प्रा./१/४०)
५४. भेद―३६ भेदों वाले १८ विकल्पों के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=५४। (पं.सं./प्रा./१/४१)
५७. भेद―३८ भेदों वाले १९ विकल्पों के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त=५७। (पं.सं./प्रा./१/४२); (गो.जी./मू./७३/१९० तथा ७८/१९६)।
चार्ट
उपरोक्त सर्व विकल्पों में स्थावर व विकलेन्द्रिय सम्बन्धी १७ विकल्प केवल संमूर्च्छिम जन्म वाले हैं। वे १७ तथा सकलेन्द्रिय के संमूर्च्छिम वाले ६ मिलकर २३ विकल्प संमूर्च्छिम के हैं। इनके पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त=६९–गर्भज के उपरोक्त ८ विकल्पों के पर्याप्त व अपर्याप्त=१६।
६९+१६=८५ (गो.जी./मू./७९/१९८); (का.आ./मू./१२३-१३१)
९८. भेद
तिर्यंचों में उपरोक्त |
=८५ |
मनुष्यों में आर्यखण्ड के पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त ये ३+म्लेच्छखण्ड, भोगभूमि व कुभोगभूमि के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त ये ३×२=६। कुल |
=९ |
देव व नारकियों में पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त |
=४ |
(गो.जी./मू. व जी.प्र./७९-८०/१९८) (का.अ./मू./१२३-१३३) |
९८ |
४०६. भेद
शुद्ध पृथिवी, खर पृथिवी, अप्, तेज, वायु, साधारण वनस्पति के नित्य व इतरनिगोद, इन सातों के बादर व सूक्ष्म=१४; प्रत्येक वनस्पति में तृण, बेल, छोटे वृक्ष, बड़े वृक्ष और कन्दमूल ये ५। इनके प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित भेद से १०। ऐसे एकेन्द्रिय के विकल्प=२४ विकलेन्द्रिय के द्वी, त्री व चतु इन्द्रिय, ऐसे विकल्प=३ इन २७ विकल्पों के पर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त रूप तीन-तीन भेद करने से कुल=८१।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच के कर्मभूमिज संज्ञी-असंज्ञी, जलचर, थलचर, नभचर के भेद से छह। तिन छह के गर्भज पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त १२ तथा तिन्हीं छह के संमूर्च्छिम पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त व लब्ध्यपर्याप्त १८। उत्कृष्ट मध्यम जघन्य भोगभूमि में संज्ञी गर्भज थलचर व नभचर ये छह, इनके पर्याप्त निवृत्त्यपर्याप्त ऐसे १२। इस प्रकार कुल विकल्प=४२।
मनुष्यों में संमूर्च्छिम मनुष्य का आर्यखण्ड का केवल एक विकल्प तथा गर्भज के आर्यखण्ड, म्लेच्छखण्ड; उत्कृष्ट, मध्य व जघन्य भोगभूमि; तथा कुभोगभूमि इन छह स्थानों के गर्भज के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त ये १२। कुल विकल्प=१३।
देवों में १० प्रकार भवनवासी, ८ प्रकार व्यन्तर, ५ प्रकार ज्योतिषी और ६३ पटलों के ६३ प्रकार वैमानिक। ऐसे ८६ प्रकार देवों के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त |
=१७२ |
नारकियों में ४९ पटलों के पर्याप्त व निवृत्त्यपर्याप्त |
=९८ |
सब=८१+४२+१३+१७२+९८ |
=४०६ |
(गो.जी./मू.व जी.प्र./८० के पश्चात् की तीन प्रक्षेपक गाथाए/२००)
- जीवसमास बताने का प्रयोजन
द्र.सं./टी./१२/३१/५ अत्रैतेभ्यो भिन्नं निजशुद्धात्मतत्त्वमुपादेयमिति भावार्थ:। =इन जीवसमासों, प्राणों व पर्याप्तियों से भिन्न जो अपना शुद्ध आत्मा है उसको ग्रहण करना चाहिए। - अन्य सम्बन्धित विषय