दंशमशक परीषह: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> का लक्षण</strong></span><br> <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/9/421/10 </span><span class="SanskritText">दंशमशकग्रहणमुपलक्षणम् ।...तेन दंशमशकमक्षिकापिशुकपुत्तिकामत्कुणकीटपिपीलिकावृश्चिकादयो गृह्यंते। तत्कृतां बाधामप्रतीकारां सहमानस्य तेषां बाधां त्रिधाप्यकुर्वाणस्य निर्वाणप्राप्तिमात्रसंकल्पप्रवणस्य तद्वेदनासहनं दंशमशकपरिषहक्षमेत्युच्यते।</span> =<span class="HindiText">सूत्र में ‘दंशमशक’ पद का ग्रहण उपलक्षण है। ...दंशमशक पद से दंशमशक, मक्खी, पिस्सू, छोटी मक्खी, खटमल, कीट, चींटी और बिच्छू आदि का ग्रहण होता है। जो इनके द्वारा की गयी बाधा को बिना प्रतिकार किये सहन करता है, मन, वचन और काय से उन्हें बाधा नहीं पहुँचाता है और निर्वाण की प्राप्ति मात्र संकल्प ही जिसका ओढना है उसके उनकी वेदना को सह लेना दंशमशक परीषहजय है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/9/8-9/608/18 </span>); (<span class="GRef"> चारित्रसार/113/3 </span>)। </span></li> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1">दंशमशक का लक्षण</strong></span><br> <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/9/9/421/10 </span><span class="SanskritText">दंशमशकग्रहणमुपलक्षणम् ।...तेन दंशमशकमक्षिकापिशुकपुत्तिकामत्कुणकीटपिपीलिकावृश्चिकादयो गृह्यंते। तत्कृतां बाधामप्रतीकारां सहमानस्य तेषां बाधां त्रिधाप्यकुर्वाणस्य निर्वाणप्राप्तिमात्रसंकल्पप्रवणस्य तद्वेदनासहनं दंशमशकपरिषहक्षमेत्युच्यते।</span> =<span class="HindiText">सूत्र में ‘दंशमशक’ पद का ग्रहण उपलक्षण है। ...दंशमशक पद से दंशमशक, मक्खी, पिस्सू, छोटी मक्खी, खटमल, कीट, चींटी और बिच्छू आदि का ग्रहण होता है। जो इनके द्वारा की गयी बाधा को बिना प्रतिकार किये सहन करता है, मन, वचन और काय से उन्हें बाधा नहीं पहुँचाता है और निर्वाण की प्राप्ति मात्र संकल्प ही जिसका ओढना है उसके उनकी वेदना को सह लेना दंशमशक परीषहजय है। (<span class="GRef"> राजवार्तिक/9/9/8-9/608/18 </span>); (<span class="GRef"> चारित्रसार/113/3 </span>)। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> दंश व मशक की एकता</strong></span><br> <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/17/4-6/616 </span><span class="SanskritText">दंशमशकस्य युगपत्प्रवृत्तेरेकान्नविंशतिविकल्प इति चेत्; न; प्रकारार्थत्वान्मशकशब्दस्य।4। दंशग्रहणात्तुल्यजातीयसंप्रत्यय इति चेत्; न; श्रुतिविरोधात् ।5। ...अन्यतरेण परीषहस्य निरूपितत्वात् ।6</span>। <span class="HindiText">=<strong>प्रश्न</strong>–दंश और मशक को जुदी-जुदी मानकर और प्रज्ञा व अज्ञान को एक मानकर, इस प्रकार एक जीव के युगपत् 19 परीषह कही जा सकती हैं ? <strong>उत्तर</strong>–यह समाधान ठीक नहीं है। क्योंकि ‘दंशमशक’ एक ही परीषह है। मशक शब्द तो प्रकारवाची है। <strong>प्रश्न</strong>–दंश शब्द से ही तुल्य जातियों का बोध हो जाता है ? अत: मशक शब्द निरर्थक है ? <strong>उत्तर</strong>–ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि इससे श्रुतविरोध होता है।...दंश शब्द प्रकारार्थक तो है नहीं। यद्यपि मशक शब्द का सीधा प्रकार अर्थ नहीं होता, पर जब दंश शब्द डांस अर्थ को कहकर परीषह का निरूपण कर देता है तब मशक शब्द प्रकार अर्थ का ज्ञापन करा देता है।</span></li> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> दंश व मशक की एकता</strong></span><br> <span class="GRef"> राजवार्तिक/9/17/4-6/616 </span><span class="SanskritText">दंशमशकस्य युगपत्प्रवृत्तेरेकान्नविंशतिविकल्प इति चेत्; न; प्रकारार्थत्वान्मशकशब्दस्य।4। दंशग्रहणात्तुल्यजातीयसंप्रत्यय इति चेत्; न; श्रुतिविरोधात् ।5। ...अन्यतरेण परीषहस्य निरूपितत्वात् ।6</span>। <span class="HindiText">=<strong>प्रश्न</strong>–दंश और मशक को जुदी-जुदी मानकर और प्रज्ञा व अज्ञान को एक मानकर, इस प्रकार एक जीव के युगपत् 19 परीषह कही जा सकती हैं ? <strong>उत्तर</strong>–यह समाधान ठीक नहीं है। क्योंकि ‘दंशमशक’ एक ही परीषह है। मशक शब्द तो प्रकारवाची है। <strong>प्रश्न</strong>–दंश शब्द से ही तुल्य जातियों का बोध हो जाता है ? अत: मशक शब्द निरर्थक है ? <strong>उत्तर</strong>–ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि इससे श्रुतविरोध होता है।...दंश शब्द प्रकारार्थक तो है नहीं। यद्यपि मशक शब्द का सीधा प्रकार अर्थ नहीं होता, पर जब दंश शब्द डांस अर्थ को कहकर परीषह का निरूपण कर देता है तब मशक शब्द प्रकार अर्थ का ज्ञापन करा देता है।</span></li> | ||
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Revision as of 09:22, 11 August 2022
- दंशमशक का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/9/9/421/10 दंशमशकग्रहणमुपलक्षणम् ।...तेन दंशमशकमक्षिकापिशुकपुत्तिकामत्कुणकीटपिपीलिकावृश्चिकादयो गृह्यंते। तत्कृतां बाधामप्रतीकारां सहमानस्य तेषां बाधां त्रिधाप्यकुर्वाणस्य निर्वाणप्राप्तिमात्रसंकल्पप्रवणस्य तद्वेदनासहनं दंशमशकपरिषहक्षमेत्युच्यते। =सूत्र में ‘दंशमशक’ पद का ग्रहण उपलक्षण है। ...दंशमशक पद से दंशमशक, मक्खी, पिस्सू, छोटी मक्खी, खटमल, कीट, चींटी और बिच्छू आदि का ग्रहण होता है। जो इनके द्वारा की गयी बाधा को बिना प्रतिकार किये सहन करता है, मन, वचन और काय से उन्हें बाधा नहीं पहुँचाता है और निर्वाण की प्राप्ति मात्र संकल्प ही जिसका ओढना है उसके उनकी वेदना को सह लेना दंशमशक परीषहजय है। ( राजवार्तिक/9/9/8-9/608/18 ); ( चारित्रसार/113/3 )। - दंश व मशक की एकता
राजवार्तिक/9/17/4-6/616 दंशमशकस्य युगपत्प्रवृत्तेरेकान्नविंशतिविकल्प इति चेत्; न; प्रकारार्थत्वान्मशकशब्दस्य।4। दंशग्रहणात्तुल्यजातीयसंप्रत्यय इति चेत्; न; श्रुतिविरोधात् ।5। ...अन्यतरेण परीषहस्य निरूपितत्वात् ।6। =प्रश्न–दंश और मशक को जुदी-जुदी मानकर और प्रज्ञा व अज्ञान को एक मानकर, इस प्रकार एक जीव के युगपत् 19 परीषह कही जा सकती हैं ? उत्तर–यह समाधान ठीक नहीं है। क्योंकि ‘दंशमशक’ एक ही परीषह है। मशक शब्द तो प्रकारवाची है। प्रश्न–दंश शब्द से ही तुल्य जातियों का बोध हो जाता है ? अत: मशक शब्द निरर्थक है ? उत्तर–ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि इससे श्रुतविरोध होता है।...दंश शब्द प्रकारार्थक तो है नहीं। यद्यपि मशक शब्द का सीधा प्रकार अर्थ नहीं होता, पर जब दंश शब्द डांस अर्थ को कहकर परीषह का निरूपण कर देता है तब मशक शब्द प्रकार अर्थ का ज्ञापन करा देता है।