पंकप्रभा: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> चौथी नरकभूमि, अपरनाम अंजना । यहाँ दस लाख बिल है । नारकियों की उत्कृष्ट आयु दस सागर प्रमाण तथा उनके शरीर की ऊँचाई बासठ धनुष दो हाथ होती है । वे मध्यम नील लेश्या वाले होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10.31-32, 90-94, 97, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.44,46, </span>इस नरकभूमि की मुटाई चौबीस हजार योजन है । इस पृथिवी के सात प्रस्तारों में क्रम से निम्न सात इंद्रक बिल हैं― 1. आर, 2. तार, 3. मार, 4. वर्चस्क, 5. तमक, 6. खड और 7. खडखड, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.82, </span>इनमें आर इंद्रक बिल की चारों दिशाओं में चौसठ और विदिशाओं में साठ श्रेणीबद्ध बिल है । अन्य इंद्रक बिलों की संख्या निम्न प्रकार है―</p> | <div class="HindiText"> <p> चौथी नरकभूमि, अपरनाम अंजना । यहाँ दस लाख बिल है । नारकियों की उत्कृष्ट आयु दस सागर प्रमाण तथा उनके शरीर की ऊँचाई बासठ धनुष दो हाथ होती है । वे मध्यम नील लेश्या वाले होते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10.31-32, 90-94, 97, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.44,46, </span>इस नरकभूमि की मुटाई चौबीस हजार योजन है । इस पृथिवी के सात प्रस्तारों में क्रम से निम्न सात इंद्रक बिल हैं― 1. आर, 2. तार, 3. मार, 4. वर्चस्क, 5. तमक, 6. खड और 7. खडखड, <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.82, </span>इनमें आर इंद्रक बिल की चारों दिशाओं में चौसठ और विदिशाओं में साठ श्रेणीबद्ध बिल है । अन्य इंद्रक बिलों की संख्या निम्न प्रकार है―</p> | ||
<p>नाम इंद्रक बिल | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | ||
<p>तार | <tr> | ||
<p>मार | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText"><strong>नाम इंद्रक बिल</strong> </p></td> | ||
<p>वर्चस्क | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText"><strong>चारों दिशाओं में</strong> </p></td> | ||
<p>तमक | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText"><strong>विदिशाओं में</strong> </p></td> | ||
<p>खड | </tr> | ||
<p>खडखड | <tr> | ||
<p> इस प्रकार इस भूमि में इंद्रक और श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या सात सौ सात तथा प्रकीर्णक बिलों की संख्या 999293 है । इस भूमि के आर इंद्रक बिल के पूर्व में निःसृष्ट, पश्चिम में अतिनिःसृष्ट, दक्षिण में निरोध और उत्तर में महानिरोध नाम के चार महानरक हैं । यहाँ दो लाख बिल संख्यात और आठ लाख बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.57,129-164 </span>इंद्रक बिलों का विस्तार निम्न प्रकार हैं― आर― 14,75000 योजन, तार 1383,333 योजन और एक योजन के तीन भाग प्रमाण, मार-12, 91, 666 योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण, वर्चस्क-120000 योजन, तमक-1108333 योजन और तीन भागों में एक भाग प्रमाण, खड-1016666 योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण तथा खडखड नामक इंद्रक का 925000 योजन हं । इस पृथिवी के इंद्रकों की मुटाई | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">तार</p></td> | ||
<p>नाम इंद्रक बिल | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">50</p></td> | ||
<p>आर | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">56</p></td> | ||
<p>तार | </tr> | ||
<p>मार | <tr> | ||
<p>तमक | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">मार</p></td> | ||
<p>खड | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">56</p></td> | ||
<p>खडखड | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">52</p></td> | ||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">वर्चस्क</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">52</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">तमक</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">48</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">44</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">खड</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">44</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">40</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">खडखड</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">40</p></td> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">36</p></td> | |||
</tr> | |||
</table> | |||
<p> इस प्रकार इस भूमि में इंद्रक और श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या सात सौ सात तथा प्रकीर्णक बिलों की संख्या 999293 है । इस भूमि के आर इंद्रक बिल के पूर्व में निःसृष्ट, पश्चिम में अतिनिःसृष्ट, दक्षिण में निरोध और उत्तर में महानिरोध नाम के चार महानरक हैं । यहाँ दो लाख बिल संख्यात और आठ लाख बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.57,129-164 </span>इंद्रक बिलों का विस्तार निम्न प्रकार हैं― आर― 14,75000 योजन, तार 1383,333 योजन और एक योजन के तीन भाग प्रमाण, मार-12, 91, 666 योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण, वर्चस्क-120000 योजन, तमक-1108333 योजन और तीन भागों में एक भाग प्रमाण, खड-1016666 योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण तथा खडखड नामक इंद्रक का 925000 योजन हं । इस पृथिवी के इंद्रकों की मुटाई अढ़ाई कोस, श्रेणीबद्ध बिलों की तीन कोस और एक कोस के तीन भागों में एक भाग तथा प्रकीर्णक बिलों की पांच कोस और एक कोस के छ: भागों पाँच भाग प्रमाण है । इंद्रक बिलों का विस्तार छत्तीस सौ पैंसठ योजन और पंचहत्तर सौ धनुष तथा एक धनुष के नौ भागों में पाँच भाग प्रमाण तथा प्रकीर्णक बिलों का विस्तार छत्तीस सौ चौसठ योजन, सतहत्तर सौ बाईस धनुष और एक धनुष के नौ भागों में दो भाग प्रमाण है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.203-239 </span>इस पृथिवी के इंद्र के बिलों के नारकियों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति निम्न प्रकार है― </p> | |||
<table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0"> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText"><strong>नाम इंद्रक बिल</strong> </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText"><strong>उत्कृष्ट स्थिति</strong> </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText"><strong>जघन्य स्थिति</strong> </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">आर</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">7, 7/3 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">7 सागर </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">तार</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">7, 7/6 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">7, 7/3 सागर</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">मार</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">8, 7/2 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">7, 7/6 सागर</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">वर्चस्क</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">8, 7/5 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">8, 7/2 सागर</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">तमक</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">9, 7/1 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">8, 7/5 सागर</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">खड</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">9, 7/4 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">9, 7/1 सागर</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">खडखड</p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">10 सागर </p></td> | |||
<td width="108" valign="top"><p class="HindiText">9, 7/4 सागर</p></td> | |||
</tr> | |||
</table> | |||
<p><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.279-285 </span></p> | <p><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.279-285 </span></p> | ||
<p> | <p class="HindiText"> इंद्रक बिल और नारकियों की ऊँचाई निम्न प्रकार है―</p> | ||
<p>आर | <table border="1" cellspacing="0" cellpadding="0" width="200"> | ||
<p>तार | <tr> | ||
<p>मार | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText"><strong>नाम इंद्रक बिल</strong> </p></td> | ||
<p>वर्चस्क | <td width="150" valign="top"><p class="HindiText"><strong>नारकियों की ऊँचाई</strong> </p></td> | ||
<p>तमक | </tr> | ||
<p>खड | <tr> | ||
<p>खडखड | <td width="50" valign="top"><p class="HindiText">आर</p></td> | ||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">पैंतीस धनुष, दो हाथ, बीस अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में चार भाग प्रमाण ।</p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" width="108" valign="top"><p class="HindiText">तार</p></td> | |||
<td width="50" width="108" valign="top"><p class="HindiText">चालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में पाँच भाग प्रमाण । </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">मार</p></td> | |||
<td width="150" valign="top"><p class="HindiText">चवालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में पाँच भाग प्रमाण । </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">वर्चस्क</p></td> | |||
<td width="150" valign="top"><p class="HindiText">उनचास धनुष, दस अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में दो भाग प्रमाण । </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">तमक</p></td> | |||
<td width="150" valign="top"><p class="HindiText">त्रेपन धनुष, दो हाथ, छ: अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में छ: भाग प्रमाण । </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">खड</p></td> | |||
<td width="150" valign="top"><p class="HindiText">अठावन धनुष, तीन अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में तीन भाग प्रमाण । </p></td> | |||
</tr> | |||
<tr> | |||
<td width="50" valign="top"><p class="HindiText">खडखड</p></td> | |||
<td width="150" valign="top"><p class="HindiText">बासठ धनुष, दो हाथ प्रमाण । </p></td> | |||
</tr> | |||
</table> | |||
<p>हपृ0 4.326-332 इस पृथिवी तक के नारकी उष्ण वेदना से दुःखी होते हैं । यहाँ नारकियों के जन्मस्थान गो, गज, अश्व और धौकनी, नाव तथा कमल के आकार के होते हैं । इस पृथिवी के निगोदों में जन्मने वाले जीव बासठ योजन दो कोस ऊँचे उछलकर नीचे गिरते हैं । यहाँँ तीव्र मिथ्यात्वी और परिग्रही तिर्यंच तथा मनुष्य जन्मते हैं । सर्प इसी पृथिवी तक जाते हैं । जीव यहाँ से निकलकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है किंतु तीर्थंकर नहीं हो सकता । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.346-380 </span></p> | |||
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Revision as of 00:33, 3 November 2022
चौथी नरकभूमि, अपरनाम अंजना । यहाँ दस लाख बिल है । नारकियों की उत्कृष्ट आयु दस सागर प्रमाण तथा उनके शरीर की ऊँचाई बासठ धनुष दो हाथ होती है । वे मध्यम नील लेश्या वाले होते हैं । महापुराण 10.31-32, 90-94, 97, हरिवंशपुराण 4.44,46, इस नरकभूमि की मुटाई चौबीस हजार योजन है । इस पृथिवी के सात प्रस्तारों में क्रम से निम्न सात इंद्रक बिल हैं― 1. आर, 2. तार, 3. मार, 4. वर्चस्क, 5. तमक, 6. खड और 7. खडखड, हरिवंशपुराण 4.82, इनमें आर इंद्रक बिल की चारों दिशाओं में चौसठ और विदिशाओं में साठ श्रेणीबद्ध बिल है । अन्य इंद्रक बिलों की संख्या निम्न प्रकार है―
नाम इंद्रक बिल |
चारों दिशाओं में |
विदिशाओं में |
तार |
50 |
56 |
मार |
56 |
52 |
वर्चस्क |
52 |
48 |
तमक |
48 |
44 |
खड |
44 |
40 |
खडखड |
40 |
36 |
इस प्रकार इस भूमि में इंद्रक और श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या सात सौ सात तथा प्रकीर्णक बिलों की संख्या 999293 है । इस भूमि के आर इंद्रक बिल के पूर्व में निःसृष्ट, पश्चिम में अतिनिःसृष्ट, दक्षिण में निरोध और उत्तर में महानिरोध नाम के चार महानरक हैं । यहाँ दो लाख बिल संख्यात और आठ लाख बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं । हरिवंशपुराण 4.57,129-164 इंद्रक बिलों का विस्तार निम्न प्रकार हैं― आर― 14,75000 योजन, तार 1383,333 योजन और एक योजन के तीन भाग प्रमाण, मार-12, 91, 666 योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण, वर्चस्क-120000 योजन, तमक-1108333 योजन और तीन भागों में एक भाग प्रमाण, खड-1016666 योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण तथा खडखड नामक इंद्रक का 925000 योजन हं । इस पृथिवी के इंद्रकों की मुटाई अढ़ाई कोस, श्रेणीबद्ध बिलों की तीन कोस और एक कोस के तीन भागों में एक भाग तथा प्रकीर्णक बिलों की पांच कोस और एक कोस के छ: भागों पाँच भाग प्रमाण है । इंद्रक बिलों का विस्तार छत्तीस सौ पैंसठ योजन और पंचहत्तर सौ धनुष तथा एक धनुष के नौ भागों में पाँच भाग प्रमाण तथा प्रकीर्णक बिलों का विस्तार छत्तीस सौ चौसठ योजन, सतहत्तर सौ बाईस धनुष और एक धनुष के नौ भागों में दो भाग प्रमाण है । हरिवंशपुराण 4.203-239 इस पृथिवी के इंद्र के बिलों के नारकियों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति निम्न प्रकार है―
नाम इंद्रक बिल |
उत्कृष्ट स्थिति |
जघन्य स्थिति |
आर |
7, 7/3 सागर |
7 सागर |
तार |
7, 7/6 सागर |
7, 7/3 सागर |
मार |
8, 7/2 सागर |
7, 7/6 सागर |
वर्चस्क |
8, 7/5 सागर |
8, 7/2 सागर |
तमक |
9, 7/1 सागर |
8, 7/5 सागर |
खड |
9, 7/4 सागर |
9, 7/1 सागर |
खडखड |
10 सागर |
9, 7/4 सागर |
हरिवंशपुराण 4.279-285
इंद्रक बिल और नारकियों की ऊँचाई निम्न प्रकार है―
नाम इंद्रक बिल |
नारकियों की ऊँचाई |
आर |
पैंतीस धनुष, दो हाथ, बीस अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में चार भाग प्रमाण । |
तार |
चालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में पाँच भाग प्रमाण । |
मार |
चवालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में पाँच भाग प्रमाण । |
वर्चस्क |
उनचास धनुष, दस अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में दो भाग प्रमाण । |
तमक |
त्रेपन धनुष, दो हाथ, छ: अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में छ: भाग प्रमाण । |
खड |
अठावन धनुष, तीन अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में तीन भाग प्रमाण । |
खडखड |
बासठ धनुष, दो हाथ प्रमाण । |
हपृ0 4.326-332 इस पृथिवी तक के नारकी उष्ण वेदना से दुःखी होते हैं । यहाँ नारकियों के जन्मस्थान गो, गज, अश्व और धौकनी, नाव तथा कमल के आकार के होते हैं । इस पृथिवी के निगोदों में जन्मने वाले जीव बासठ योजन दो कोस ऊँचे उछलकर नीचे गिरते हैं । यहाँँ तीव्र मिथ्यात्वी और परिग्रही तिर्यंच तथा मनुष्य जन्मते हैं । सर्प इसी पृथिवी तक जाते हैं । जीव यहाँ से निकलकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है किंतु तीर्थंकर नहीं हो सकता । हरिवंशपुराण 4.346-380