बाईस परीषह—आर्यिका ज्ञानमती: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:50, 18 May 2019
मैं तप तपता दीर्घकाल से, पर कुछ अतिशय नहीं दिखता
सुरजन अतिशय करते कहना, मात्र कथन ही है दिखता ॥
इस विध दृगधारी मुनि मन में, कलूष भावना ही रखते हैं
पर वांछा को छोड़ अदर्शन, परिषह नित मुनि सहते हैं ॥२२॥
(॥इति बाईस परीषह समाप्त:॥)