पारिव्राज्य: Difference between revisions
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Revision as of 13:58, 18 October 2022
कर्त्रन्वयी सात क्रियाओं में तीसरी क्रिया । इसमें गार्हस्थ्यधर्म का पालन करने के पश्चात् गृहवास से विरक्त होकर निर्वाण की प्राप्ति के भाव से मुनि-दीक्षा ग्रहण की जाती है । महापुराण 38.66-67, 39.155-157 इस सत्ताईस सूत्रपद होते हैं― 1. जाति 2. मूर्ति 3. मूर्ति के लक्षण 4. शारीरिक सौंदर्य 5. प्रभा 6. मंडल 7. चक्र 8. अभिषेक 9. नाथता 10. सिंहासन 11. उपधान 12. छत्र 13. चमर 14. घोषणा 15. अशोकवृक्ष 16. निधि 17. गृहशोभा 18. अवगाहन 19. क्षेत्रज्ञ 20. आज्ञा 21. सभा 22. कीर्ति 23. वंदनीयता 24. वाहन 25. भाषा 26. आहार और 27. सुख । ये परमेष्ठियों के गुण कहलाते हैं । भव्य पुरुष को अपने गुण आदि का ध्यान न रखते हुए और परमेष्ठियों के इन गुणों का आदर करते हुए दीक्षा ग्रहण करना चाहिए । महापुराण 39.162-166