पुरुरवा: Difference between revisions
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(<span class="GRef"> महापुराण/62/87-88 </span>एक भील था। एक समय मुनिराज के दर्शनकर मद्य, मांस व मधु का त्याग किया। इस व्रत के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। यह महावीर भगवान का दूरवर्ती पूर्व भव है। उनके मरीचि के भव की अपेक्षा यह दूसरा पूर्व भव है। - देखें [[ महावीर ]]। | <div class="HindiText"> (<span class="GRef"> महापुराण/62/87-88 </span>एक भील था। एक समय मुनिराज के दर्शनकर मद्य, मांस व मधु का त्याग किया। इस व्रत के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। यह महावीर भगवान का दूरवर्ती पूर्व भव है। उनके मरीचि के भव की अपेक्षा यह दूसरा पूर्व भव है। - देखें [[ महावीर ]]। | ||
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Revision as of 16:46, 18 October 2022
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
पुंडरीकिणी नगरी के समीपवर्ती मधुक वन का निवासी भील । यह स्वयं भद्र प्रकृति का था और इसकी प्रिया कालिका भी वैसे ही स्वभाव की थी । एक दिन सागरसेन मुनि उस वन में आये । वे अपने संघ से बिछुड़ गये थे । दूर से पुरुरवा ने उन्हें मृग समझकर अपने बाण से मारना चाहा । कालिका ने उसे बाण चढ़ाते देखा । उसने कहा कि ये मृग नहीं है ये तो वन देवता है, वंदनीय हैं । यह उनके पास गया उनकी इसने वंदना की । व्रत अंगीकार किये और मांस का त्याग किया । सत्तों का निर्वाह करते हुए इसने अंत में समाधिमरण किया जिससे यह सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहां से च्युत होकर चक्री भरत और उनकी रानी धारिणी का मरीचि नाम का पुत्र हुआ । यही मरीचि अनेक जन्मों के पश्चात् राजा सिद्धार्थ और उसकी रानी प्रियकारिणी के पुत्र के रूप में चौबीसवाँ तीर्थंकर महावीर हुआ । महापुराण 62.86-89, वीरवर्द्धमान चरित्र 2. 18-40, 64-69, 9.88-89 देखें महावीर