प्रकीर्णक बिल: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
mNo edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText">नारकियों का एक प्रकार का बिल | </div><br> | <div class="HindiText"><li><big>नारकियों का एक प्रकार का बिल |</big></li> </div><br> | ||
तिलोयपण्णत्ति/2/28,36 <span class="PrakritGatha">सत्तमखिदिबहुमज्झे बिलाणि सेसेसु अप्पबहुलं तं। उवरिं हेट्ठे जोयणसहस्समुज्झिय हवंति पडलकमे।28। इंदयसेढी बद्धा पइण्णया य हवंति तिवियप्पा। ते सव्वे णिरयबिला दारुण दुक्खाणं संजणणा।36। </span>=<span class="HindiText">सातवीं पृथिवी के तो ठीक मध्य भाग में ही नारकियों के बिल हैं। परंतु ऊपर अब्बहुलभाग पर्यंत शेष छह पृथिवियों में नीचे व ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर पटलों के क्रम से नारकियों के बिल हैं।28। वे नारकियों के बिल, इंद्रक, श्रेणी बद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं। ये सब ही बिल नारकियों को भयानक दु:ख दिया करते हैं।36। ( राजवार्तिक/3/2/2/162/10 ), ( हरिवंशपुराण/4/71-72 ), ( त्रिलोकसार/150 ), ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/142 )।</span><br /> | तिलोयपण्णत्ति/2/28,36 <span class="PrakritGatha">सत्तमखिदिबहुमज्झे बिलाणि सेसेसु अप्पबहुलं तं। उवरिं हेट्ठे जोयणसहस्समुज्झिय हवंति पडलकमे।28। इंदयसेढी बद्धा पइण्णया य हवंति तिवियप्पा। ते सव्वे णिरयबिला दारुण दुक्खाणं संजणणा।36। </span>=<span class="HindiText">सातवीं पृथिवी के तो ठीक मध्य भाग में ही नारकियों के बिल हैं। परंतु ऊपर अब्बहुलभाग पर्यंत शेष छह पृथिवियों में नीचे व ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर पटलों के क्रम से नारकियों के बिल हैं।28। वे नारकियों के बिल, इंद्रक, श्रेणी बद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं। ये सब ही बिल नारकियों को भयानक दु:ख दिया करते हैं।36। ( राजवार्तिक/3/2/2/162/10 ), ( हरिवंशपुराण/4/71-72 ), ( त्रिलोकसार/150 ), ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/142 )।</span><br /> | ||
Line 5: | Line 5: | ||
तिलोयपण्णत्ति/2/95,104 <span class="PrakritGatha"> संखेज्जमिंदयाणं रुं दं सेढिगदाण जोयणया। तं होदि असंखेज्जं पइण्णयाणुभयमिस्सं च।95। संखेज्जवासजुत्ते णिरय-विले होंति णारया जीवा। संखेज्जा णियमेणं इदरम्मि तहा असंखेज्जा।104। </span>=<span class="HindiText">इंद्रक बिलों का विस्तार संख्यात योजन, श्रेणीबद्ध बिलों का असंख्यात योजन और प्रकीर्णक बिलों का विस्तार उभयमिश्र हैं, अर्थात् कुछ का संख्यात और कुछ का असंख्यात योजन है।95। संख्यात योजनवाले नरक बिलों में नियम से संख्यात नारकी जीव तथा असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों में असंख्यात ही नारकी जीव होते हैं।104। ( राजवार्तिक/3/2/2/163/11 ); ( हरिवंशपुराण/4/169-170 ); ( त्रिलोकसार/167-168 )।<br> | तिलोयपण्णत्ति/2/95,104 <span class="PrakritGatha"> संखेज्जमिंदयाणं रुं दं सेढिगदाण जोयणया। तं होदि असंखेज्जं पइण्णयाणुभयमिस्सं च।95। संखेज्जवासजुत्ते णिरय-विले होंति णारया जीवा। संखेज्जा णियमेणं इदरम्मि तहा असंखेज्जा।104। </span>=<span class="HindiText">इंद्रक बिलों का विस्तार संख्यात योजन, श्रेणीबद्ध बिलों का असंख्यात योजन और प्रकीर्णक बिलों का विस्तार उभयमिश्र हैं, अर्थात् कुछ का संख्यात और कुछ का असंख्यात योजन है।95। संख्यात योजनवाले नरक बिलों में नियम से संख्यात नारकी जीव तथा असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों में असंख्यात ही नारकी जीव होते हैं।104। ( राजवार्तिक/3/2/2/163/11 ); ( हरिवंशपुराण/4/169-170 ); ( त्रिलोकसार/167-168 )।<br> | ||
<br> | <br> | ||
अन्य संबंधित विषय के लिए देखें [[ नरक#5.3 | नरक - 5.3]]। | <li><span class="HindiText">अन्य संबंधित विषय के लिए देखें [[ नरक#5.3 | नरक - 5.3]]।</li> | ||
</span><br /> | </span><br /> | ||
Line 11: | Line 11: | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ प्रकीर्णक देव | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ प्रकीर्णक देव | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
<br> | |||
[[ प्रकीर्णक विमान | अगला पृष्ठ ]] | [[ प्रकीर्णक विमान | अगला पृष्ठ ]] |
Revision as of 11:40, 26 November 2022
तिलोयपण्णत्ति/2/28,36 सत्तमखिदिबहुमज्झे बिलाणि सेसेसु अप्पबहुलं तं। उवरिं हेट्ठे जोयणसहस्समुज्झिय हवंति पडलकमे।28। इंदयसेढी बद्धा पइण्णया य हवंति तिवियप्पा। ते सव्वे णिरयबिला दारुण दुक्खाणं संजणणा।36। =सातवीं पृथिवी के तो ठीक मध्य भाग में ही नारकियों के बिल हैं। परंतु ऊपर अब्बहुलभाग पर्यंत शेष छह पृथिवियों में नीचे व ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर पटलों के क्रम से नारकियों के बिल हैं।28। वे नारकियों के बिल, इंद्रक, श्रेणी बद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं। ये सब ही बिल नारकियों को भयानक दु:ख दिया करते हैं।36। ( राजवार्तिक/3/2/2/162/10 ), ( हरिवंशपुराण/4/71-72 ), ( त्रिलोकसार/150 ), ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/11/142 )।
धवला 14/5,6,641/495/8 णिरयसेडिबाद्धणि णिरयाणि णाम। सेडिबद्धाणं मज्झिमणिरयावासा णिरइंदयाणि णाम। तत्थतणपइण्णया णिरयपत्थडाणि णाम। =नरक के श्रेणीबद्ध नरक कहलाते हैं, श्रेणीबद्धों के मध्य में जो नरकवास हैं वे नरकेंद्रक कहलाते हैं। तथा वहाँ के प्रकीर्णक नरक प्रस्तर कहलाते हैं।
तिलोयपण्णत्ति/2/95,104 संखेज्जमिंदयाणं रुं दं सेढिगदाण जोयणया। तं होदि असंखेज्जं पइण्णयाणुभयमिस्सं च।95। संखेज्जवासजुत्ते णिरय-विले होंति णारया जीवा। संखेज्जा णियमेणं इदरम्मि तहा असंखेज्जा।104। =इंद्रक बिलों का विस्तार संख्यात योजन, श्रेणीबद्ध बिलों का असंख्यात योजन और प्रकीर्णक बिलों का विस्तार उभयमिश्र हैं, अर्थात् कुछ का संख्यात और कुछ का असंख्यात योजन है।95। संख्यात योजनवाले नरक बिलों में नियम से संख्यात नारकी जीव तथा असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों में असंख्यात ही नारकी जीव होते हैं।104। ( राजवार्तिक/3/2/2/163/11 ); ( हरिवंशपुराण/4/169-170 ); ( त्रिलोकसार/167-168 )।