बंधन: Difference between revisions
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<li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText"> बन्धन नामकर्म का लक्षण</span></strong> <br /> | <li><strong name="1" id="1"><span class="HindiText"> बन्धन नामकर्म का लक्षण</span></strong> <br /> | ||
सर्वार्थसिद्धि/8/11/389/12 <span class="SanskritText"> शरीरनामकर्मोदयवशादुपात्तानां पुद्गलानामन्योन्यप्रदेशसंश्लेषणं यतो भवति तद्बन्धननाम । (तस्याभावे शरीरप्रदेशानां दारुनिचयवत् असंपर्कः स्यात् राजवार्तिक ) ।</span> = <span class="HindiText">शरीर नामकर्म के उदय से प्राप्त हुए पुद्गलों का अन्योन्य प्रदेश संश्लेष जिसके निमित्त से होता है, वह बन्धन नामकर्म है । इसके अभाव में शरीर लकड़ियों के ढेर जैसा हो जाता है । ( राजवार्तिक ) ( राजवार्तिक/8/11/6/576/24 ) ( धवला 13/5,5,101/364/1 ) ( गोम्मटसार कर्मकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/1 ) ।</span><br /> | |||
धवला 6/1,9-1,28/52/11 <span class="PrakritText"> सरीरट्ठमागयाणं पोग्गलक्खंधाणं जीवसंबद्धाणं जेहि पोग्गलेहि जीवसंबद्धेहिपत्तोदएहि, परोप्परंकीरइ तेसिं पोग्गलक्खंधाणं सरीरबंधणसण्णा, कारणे कज्जुवयारादो, कत्तारणिद्देसादो वा । जइ सरीरबंधणणामक्कमं जीवस्स ण होज्ज, तो वालुवाकाय पुरिससरीरं व सरीरं होज्ज परमाणूणमण्णोण्णे बंधाभावा ।</span> = <span class="HindiText">शरीर के लिए आये हुए जीवसम्बद्ध पुद्गल स्कन्धों का जिन जीवसम्बद्ध और उदय प्राप्तपुद्गलों के साथ परस्पर बन्ध किया जाता है उन पुद्गल स्कन्धों की शरीरबन्धन संज्ञाकारण में कार्य के उपचार से, अथवा कर्तृनिर्देश से है । यदि शरीरबन्धन नामकर्म जीव के न हो, तो बालु का द्वारा बनाये पुरुष-शरीर के समान जीव का शरीर होगा, क्योंकि परमाणुओं का परस्पर में बन्ध नहीं है ।<br /> | |||
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<li><span class="HindiText"><strong> बन्धन नामकर्म के भेद</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong> बन्धन नामकर्म के भेद</strong> </span><br /> | ||
षट्खण्डागम 6/1,9-1/ सू. 32/70 <span class="PrakritText">जंतं सरीरबंधणणामकम्मं तं पंचविहं, ओरालियसरीरबंधणणामं वेउव्वियसरीरबंधणणामं आहारसरीरबंधणणामं तेजासरीरबंधणणामं कम्मइयसरीरबंधणणामं चेदि ।32। </span>= <span class="HindiText">जो शरीरबन्धन नामकर्म है वह पाँच प्रकार का है - औदारिकशरीर बन्धननामकर्म, वैक्रियिकशरीर बन्धननामकर्म, आहारकशरीर बन्धननामकर्म, तैजसशरीर बन्धननामकर्म और कार्मणशरीर बन्धन नामकर्म । ( षट्खण्डागम 13/5,5/ सू. 105/367); (पं.सं./प्रा./11); (पं.सं./प्रा./2/4/पृ.47/पं.6); (म.वं./1/6/29); ( गोम्मटसार कर्मकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/1 ) ।<br /> | |||
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Revision as of 19:13, 17 July 2020
- बन्धन नामकर्म का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/8/11/389/12 शरीरनामकर्मोदयवशादुपात्तानां पुद्गलानामन्योन्यप्रदेशसंश्लेषणं यतो भवति तद्बन्धननाम । (तस्याभावे शरीरप्रदेशानां दारुनिचयवत् असंपर्कः स्यात् राजवार्तिक ) । = शरीर नामकर्म के उदय से प्राप्त हुए पुद्गलों का अन्योन्य प्रदेश संश्लेष जिसके निमित्त से होता है, वह बन्धन नामकर्म है । इसके अभाव में शरीर लकड़ियों के ढेर जैसा हो जाता है । ( राजवार्तिक ) ( राजवार्तिक/8/11/6/576/24 ) ( धवला 13/5,5,101/364/1 ) ( गोम्मटसार कर्मकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/1 ) ।
धवला 6/1,9-1,28/52/11 सरीरट्ठमागयाणं पोग्गलक्खंधाणं जीवसंबद्धाणं जेहि पोग्गलेहि जीवसंबद्धेहिपत्तोदएहि, परोप्परंकीरइ तेसिं पोग्गलक्खंधाणं सरीरबंधणसण्णा, कारणे कज्जुवयारादो, कत्तारणिद्देसादो वा । जइ सरीरबंधणणामक्कमं जीवस्स ण होज्ज, तो वालुवाकाय पुरिससरीरं व सरीरं होज्ज परमाणूणमण्णोण्णे बंधाभावा । = शरीर के लिए आये हुए जीवसम्बद्ध पुद्गल स्कन्धों का जिन जीवसम्बद्ध और उदय प्राप्तपुद्गलों के साथ परस्पर बन्ध किया जाता है उन पुद्गल स्कन्धों की शरीरबन्धन संज्ञाकारण में कार्य के उपचार से, अथवा कर्तृनिर्देश से है । यदि शरीरबन्धन नामकर्म जीव के न हो, तो बालु का द्वारा बनाये पुरुष-शरीर के समान जीव का शरीर होगा, क्योंकि परमाणुओं का परस्पर में बन्ध नहीं है ।
- बन्धन नामकर्म के भेद
षट्खण्डागम 6/1,9-1/ सू. 32/70 जंतं सरीरबंधणणामकम्मं तं पंचविहं, ओरालियसरीरबंधणणामं वेउव्वियसरीरबंधणणामं आहारसरीरबंधणणामं तेजासरीरबंधणणामं कम्मइयसरीरबंधणणामं चेदि ।32। = जो शरीरबन्धन नामकर्म है वह पाँच प्रकार का है - औदारिकशरीर बन्धननामकर्म, वैक्रियिकशरीर बन्धननामकर्म, आहारकशरीर बन्धननामकर्म, तैजसशरीर बन्धननामकर्म और कार्मणशरीर बन्धन नामकर्म । ( षट्खण्डागम 13/5,5/ सू. 105/367); (पं.सं./प्रा./11); (पं.सं./प्रा./2/4/पृ.47/पं.6); (म.वं./1/6/29); ( गोम्मटसार कर्मकाण्ड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/1 ) ।
- बन्धन नामकर्म की बन्ध, उदय, सत्त्व प्ररूपणाएँ तथा तत्सम्बन्धी नियम शंकादि - देखें वह वह नाम ।