बुधजनजी: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:04, 19 January 2008
कविवर बुधजनजी :- `बुधजन' के नाम से प्रसिद्ध कविवर का वास्तविक नाम श्री भदीचन्द्र था । जयपुर निवासी खण्डेलवाल जाति के बजगोत्रज श्री निहालचन्द्रजी के आप तृतीय सुपुत्र थे । आपने विद्याध्ययन टिक्कीवालों का रास्ता निवासी पं. मांगीलालजी के पास किया था । जैनधर्म के प्रति बाल्यकाल से ही आपकी भक्ति थी और श्रावक के षटावश्यकों का यथाशक्ति पालन करते थे । आप जयपुर के प्रसिद्ध दीवान अमरचन्द्रजी के मुख्य मुनीम थे, वे आपके कार्य से सदैव सन्तुष्ट रहते थे । दीवानजी की आज्ञा से आपके मार्गदर्शन में ही दो विशाल जिनमन्दिरों का निर्माण हुआ है, जिनमें से एक लालजी सांड के रास्ते में स्थित छोटे दीवानजी का मन्दिर है तथा दूसरा घीवालों के रास्ते का मंदिर आपके नाम से ही भदीचन्द्र का मंदिर विख्यात हुआ है । आप उच्चकोटि के विद्वान थे । आपकी शास्त्रसभा में अन्य मतावलम्बी भी आते थे, उनकी शंकाआें का समाधान आप बड़ी खूबी के साथ करते थे । आप उच्चकोटि के कवि भी थे । आपकी कविता का मुख्य विषय भव्य प्राणियों को जैनधर्म के सिद्धान्त सरल भाषा में समझाकर प्रवृत्ति मार्ग से हटाना व निवृत्ति मार्ग में लगाना था । आपके द्वारा रचित चार ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं और वे चारों पद्यमय हैं - १. तत्त्वार्थ बोध २. बुधजन सतसई ३. पंचास्तिकाय ४. बुधजन विलास । इन चारों ग्रन्थों की रचना क्रमश: विक्रम संवत् १८७१, १८७९, १८९१ व १८९२ में हुई है । साहित्यिक दृष्टि से आपकी रचनाएँ हिन्दी के वृन्द, रहीम, बिहारी, तुलसी व कबीर आदि प्रसिद्ध कवियों से किसी भी अंश में कम नहीं है ।