भद्र: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | == सिद्धांतकोष से == | ||
<li> सा.ध./ | <ol> | ||
<li class="HindiText"> आपके अपरनाम यशोभद्र व अभय थे–देखें | <li> सा.ध./1/9 <span class="SanskritText">कुधर्मस्थोऽपि सद्धर्म, लघुकर्मतयाऽद्विषन्। भद्र: स... अभ्रदस्तद्विपर्ययात्।9। </span>= <span class="HindiText">मिथ्यामत में स्थित होता हुआ भी मिथ्यात्व की मन्दता से समीचीन जैनधर्म से द्वेष नहीं करने वाला व्यक्ति भद्र कहलाता है। उससे विपरीत अभद्र कहलाता है। </span></li> | ||
<li class="HindiText"> रुचक पर्वतस्थ एक | <li class="HindiText"> आपके अपरनाम यशोभद्र व अभय थे–देखें [[ यशोभद्र ]]; </li> | ||
<li class="HindiText"> नन्दीश्वर समुद्र का रक्षक व्यन्तर | <li class="HindiText"> रुचक पर्वतस्थ एक कूट–देखें [[ लोक#5.13 | लोक - 5.13]]; </li> | ||
<li class="HindiText"> नन्दीश्वर समुद्र का रक्षक व्यन्तर देव–देखें [[ व्यंतर#4.7 | व्यंतर - 4.7]]।</li> | |||
</ol> | </ol> | ||
[[भदन्त | | <noinclude> | ||
[[ भदन्त | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[Category:भ]] | [[ भद्रक | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: भ]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<p id="1"> (1) सूर्यवंश में हुए राजा सागर का पुत्र और राजा रवितेज का पिता । इसने सार-सागर से भयभीत होकर निर्ग्रन्थ व्रत ले लिया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.6,9 </span></p> | |||
<p id="2">(2) सौधर्म और ऐशान मुगल स्वर्गों का इक्कीसवाँ इन्द्रक । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.46, </span>देखें [[ सौधर्म ]]</p> | |||
<p id="3">(3) नन्दीश्वर समुद्र के दो रक्षक देवो में प्रथम रक्षक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5. 645 </span></p> | |||
<p id="4">(4) भरतेश के भाइयों द्वारा त्यक्त देशों में भरतक्षेत्र के मध्य का एक देश । हुपु0 11.75</p> | |||
<p id="5">(5) राजा शंख का पुत्र और चेदिराट् के संस्थापक तथा शुक्तिमती नगरी के निर्माता अभिचन्द्र का पिता । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.35-36 </span></p> | |||
<p id="6">(6) तीसरे बलभद्र । ये अनुत्तर विमान से चयकर सुवेषा स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । आयु के अन्त में ये संसार से उदासीन हुए और तप से कर्मों को भस्म करके मोक्ष गये । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.236-238, 248 </span></p> | |||
<p id="7">(7) द्वारावती नगरी का नृप । इसकी दो रानियाँ थी― सुभद्रा और पृथिवी । बलभद्र धर्म और नारायण स्वयंभू इसी के पुत्र थे । <span class="GRef"> महापुराण 59.71, 86-87 </span></p> | |||
<p id="8">(8) जम्बूद्वीप में ऐरावत क्षेत्र के रत्नपुर नगर का एक गाड़ीवान । यह धन्य गाड़ीवान का अग्रज था । किसी बैल के निमित्त से ये दोनों एक-दूसरे का घात कर मर गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 63.157-158 </span></p> | |||
<p id="9">(9) कुलकर सन्मति के समयवर्ती सरल परिणामी आर्य पुरुष । <span class="GRef"> महापुराण 3.83, 93 </span></p> | |||
<p id="10">(10) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25. 213 </span></p> | |||
<noinclude> | |||
[[ भदन्त | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ भद्रक | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: भ]] |
Revision as of 21:44, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- सा.ध./1/9 कुधर्मस्थोऽपि सद्धर्म, लघुकर्मतयाऽद्विषन्। भद्र: स... अभ्रदस्तद्विपर्ययात्।9। = मिथ्यामत में स्थित होता हुआ भी मिथ्यात्व की मन्दता से समीचीन जैनधर्म से द्वेष नहीं करने वाला व्यक्ति भद्र कहलाता है। उससे विपरीत अभद्र कहलाता है।
- आपके अपरनाम यशोभद्र व अभय थे–देखें यशोभद्र ;
- रुचक पर्वतस्थ एक कूट–देखें लोक - 5.13;
- नन्दीश्वर समुद्र का रक्षक व्यन्तर देव–देखें व्यंतर - 4.7।
पुराणकोष से
(1) सूर्यवंश में हुए राजा सागर का पुत्र और राजा रवितेज का पिता । इसने सार-सागर से भयभीत होकर निर्ग्रन्थ व्रत ले लिया था । पद्मपुराण 5.6,9
(2) सौधर्म और ऐशान मुगल स्वर्गों का इक्कीसवाँ इन्द्रक । हरिवंशपुराण 6.46, देखें सौधर्म
(3) नन्दीश्वर समुद्र के दो रक्षक देवो में प्रथम रक्षक देव । हरिवंशपुराण 5. 645
(4) भरतेश के भाइयों द्वारा त्यक्त देशों में भरतक्षेत्र के मध्य का एक देश । हुपु0 11.75
(5) राजा शंख का पुत्र और चेदिराट् के संस्थापक तथा शुक्तिमती नगरी के निर्माता अभिचन्द्र का पिता । हरिवंशपुराण 17.35-36
(6) तीसरे बलभद्र । ये अनुत्तर विमान से चयकर सुवेषा स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । आयु के अन्त में ये संसार से उदासीन हुए और तप से कर्मों को भस्म करके मोक्ष गये । पद्मपुराण 20.236-238, 248
(7) द्वारावती नगरी का नृप । इसकी दो रानियाँ थी― सुभद्रा और पृथिवी । बलभद्र धर्म और नारायण स्वयंभू इसी के पुत्र थे । महापुराण 59.71, 86-87
(8) जम्बूद्वीप में ऐरावत क्षेत्र के रत्नपुर नगर का एक गाड़ीवान । यह धन्य गाड़ीवान का अग्रज था । किसी बैल के निमित्त से ये दोनों एक-दूसरे का घात कर मर गये थे । महापुराण 63.157-158
(9) कुलकर सन्मति के समयवर्ती सरल परिणामी आर्य पुरुष । महापुराण 3.83, 93
(10) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25. 213