यथाख्यातचारित्र: Difference between revisions
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<p> मोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय होने पर प्राप्त आत्मा का शुद्ध स्वरूप । इसे मोक्ष का साधन कहा है यह कषाय रहित अवस्था में उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> महापुराण 47.247, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56. 78, 64.19 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> मोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय होने पर प्राप्त आत्मा का शुद्ध स्वरूप । इसे मोक्ष का साधन कहा है यह कषाय रहित अवस्था में उत्पन्न होता है । <span class="GRef"> महापुराण 47.247, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56. 78, 64.19 </span></p> | ||
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Revision as of 16:56, 14 November 2020
मोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय होने पर प्राप्त आत्मा का शुद्ध स्वरूप । इसे मोक्ष का साधन कहा है यह कषाय रहित अवस्था में उत्पन्न होता है । महापुराण 47.247, हरिवंशपुराण 56. 78, 64.19