योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 70: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
आकाश एवं पुद्गल द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या - | <p class="Utthanika">आकाश एवं पुद्गल द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या -</p> | ||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
प्रदेशा नभसोs नन्ता अनन्तानन्तमानका: ।<br> | प्रदेशा नभसोs नन्ता अनन्तानन्तमानका: ।<br> | ||
Line 6: | Line 5: | ||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- जिनै: नभस: अनन्ता: पुद्गलानां अनंतानंत-मानका: प्रदेशा: उक्ता:, परमाणु: अनंशक: । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- जिनै: नभस: अनन्ता: पुद्गलानां अनंतानंत-मानका: प्रदेशा: उक्ता:, परमाणु: अनंशक: । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- जिनेन्द्र देव ने आकाश द्रव्य के अनंत और पुद्गल द्रव्यों के अनन्तानन्त प्रदेश कहे हैं । उसीतरह पुद्गल परमाणु को अप्रदेशी अर्थात् एक प्रदेशी कहा है । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- जिनेन्द्र देव ने आकाश द्रव्य के अनंत और पुद्गल द्रव्यों के अनन्तानन्त प्रदेश कहे हैं । उसीतरह पुद्गल परमाणु को अप्रदेशी अर्थात् एक प्रदेशी कहा है । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 69 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 69 | पिछली गाथा]] |
Latest revision as of 10:14, 15 May 2009
आकाश एवं पुद्गल द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या -
प्रदेशा नभसोs नन्ता अनन्तानन्तमानका: ।
पुद्गलानां जिनैरुक्ता: परमाणुरनंशक: ।।७०।।
अन्वय :- जिनै: नभस: अनन्ता: पुद्गलानां अनंतानंत-मानका: प्रदेशा: उक्ता:, परमाणु: अनंशक: ।
सरलार्थ :- जिनेन्द्र देव ने आकाश द्रव्य के अनंत और पुद्गल द्रव्यों के अनन्तानन्त प्रदेश कहे हैं । उसीतरह पुद्गल परमाणु को अप्रदेशी अर्थात् एक प्रदेशी कहा है ।